आर्य मत लीला | Arya Mat Leela

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Arya Mat Leela by जुगलकिशोर मुख़्तार - Jugalkishaor Mukhtar

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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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= आरती है क्लौर जलती नहीं है সী आायंच्रतलीला ॥ उसको-इनमें से कोई खालेता है तो चह बहुत सवाद्‌ साक्षत होती है और तब -यह्‌ -चिचार होतारै कि आग क्रो सिमी प्रकार फाब करना च।द्विये और इनसे खाले के पदाये सन लिये जाया करें। कालान्तर में कोड ज़रा संमफदूार वा सिंडर समुब्य आगको शेपलते समीप भो से आता है और . लक्कही में लयाफर उसको रक्षा करता है रौर उप में छालक्षर खानेको वस्तु भन लेता है। करत २ पत्थर की सिल वा पत्थर, के गोले आादिक से खाने आउिफंकतो बस्लुका चरा करता सीख जाते हैं किए जब कभी कहींसे उनको लोहे -आदिककौ खान सिलनाती है तौ उसको पत्थरों से छूट पीटकर कोई जार वनाजेते हैं इसही प्रका- र सब काम बद्धिसे निकालते चलेजाते हैं जब २ उनमें फोई विशेष बुद्धिबाला पैदा होता रहला है तब तच अधिक बात प्राप्त ह्वोकती है यह एक सा- আরব্য बात है कि सब मनुष्य एकसां बट्टिके नहीं होते हैं कभी २ को नुष्य बहुत-विशेष छुट्धिका भी पैदा वीजाय करता है और उससे बहुत बाद चनत्कार होजाता' है मैप्ता क्लि आप्य साइयोंके फकपनातसार स्वामी दुषानन्द्‌ सरखती नी एक अहुत वुद्धि के भनष्य पैदाहुन और अपने जान के प्रकाश से सारे भारतके सन॒ष्यों में उज्षियाला कर दिया । (९३ भादेयो ¡ यद्यपि मनृष्यकी उन्नति इस प्रकार हो सक्ती है जौर-इस ही कारण किसी प्रश्नके करनेकी आवश्य न्ता नही ची परन्तु हम इन अ्रश्नोंके যানি অং इस कारण भ्जबर हुवे हैं कनि श्री स्वामी दुथानन्दजी ने अपने चेशोंकी दसत भर्तार मन्‌ष्यकी उति होने के बिपरोत शिक्षादी है-खामी जी को वेदों को ईश्वरका वाक्य और प्राचीन सिद्दु ऋरे के बास्ते इनकी उत्पत्ति सृष्टिक्षौ आदि मे वसन कर- नी पड़ी और उस समय इनके प्रगट करने की ज़रूरत को इस प्रकार ज़ा- हिर करना पडा कि सनष्य लिना सिखाये कद सीसं ही नदीं सक्ता है । स्वालीजी इसत विषयमे इस मक्षार लि खते हैं।- “जब इश्वरने प्रथम वेद रचे हैं उन को पढ़ने के पश्चात्‌ ग्रन्थ रचते की सासथ्य किसी ससण्यक्षों हो सक्तोहै। उप्तके पढ़ने और पझ्ानमे बिना कोई भौ सलष्य विद्वान नहीं हो स्ता ऊँसे इस समयमें किसो शाखको पहके फकिसीका उपदेश झुनके और मनष्यों के परस्पर व्यवहारोंको देखके ही चल घ्योंको ज्ञाव होता है | झनन्‍यधा कभी नहीं होता । जैंसे किमो समुष्यके बा- लक्तको जन्म से एकतमे र्खे उको श्च और जल युक्तिसे देवे, उरकेरपथ भापणादि व्यवद्वार लेशसात्र भी-कोई नलुष्य न दरे क्षि छव तकः उचा म- रण न ছুট জল ভষদী সী




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