हृदय मर्म प्रकाशिका | Harday Marm Prakashika

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अवधेश कुमार - Avdhesh Kumar

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श्री गंगादासजी महाराज - Shree Gangadas Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९५ ) होत कलिमल च्छ छप्त 1 उपसंहार मँ यद्‌ कटा जावा ह्- “रामनाम सो प्रतीत हृदय सुस्यिर थपत-पावन किए राजय रिपर तुलसिह तो प्रपत ॥ আজান रामनाम कदने से श्यशान्त हृदय संतोप एवं शान्ति पाता ई--संत्ोषी ! नन्‍्दन वने शान्ति एवं हि कामपुक? । संतोप दो आनन्द वन, शान्ति ही काम चेनु हे सो रामनास जपते ही हृदय संतोप ओर शान्ति पाता है। देखिए तुलसीदास जी कहते हैं. कि रामनाम के चल से वो तुलसी से मी पापी एवं रावण भी पावन दो गया हे । “तास्‌ तेज মান সন্তু আলল अर्थात्‌ श्रीराम जी के भुखारविन्द में सायुज्य मुक्ति पाया। कारण कया था कि--- सम्यकार मए तिनके मन मुक्त भए छूटे भवर्वघन” अर्थात्‌ रामनाम से दी मुक्ति पाए, रावण अंत में कहता दे--कहदाँ राम अर्थात्त्‌ हा राम ! से कहाँ हे--वबस रामवो सामनेये द्ी--“आरत गिरा दुनत प्रु, अभय करेंगे तोहि”--सो ठीक चैसा ही हुआ। हा राम | तूँ कष्टों हे---आरत बाणो सुन्तेदह्ीभभु ने बुखा लिया, आश्रो--शताघु तेज समान प्रयु आनन राम अवतार रावणं के लिये दी हुआ था और रामनाम परत्त्व फा रावण से হী ঘৃযাজন কী प्रकाशित हुआ ह--“वरेक नाम कहत नर जेऊ | होत तरण तारण नर तेड | अर्थात्‌ एक दी धार जो राम कदता ই वद स्त्रयं तो सर हा जाता है परन्तु ओरों को भी तारता है। राचण एक ही थार राम कद्ा था, फिर भी अपने तो तर ही गया परन्तु अपने चरित्र द्वारा सारे जगत के प्राणियों को तार रहा दै--/यह राश्यारि चरित्र धावन राम पद रति अद सदा| कामादि ह्र वित्रा कर घुर्‌ पिद पुःन गाह मृदः“ छरथ्यन्‌ “सोङ्‌ नर गड्‌ गाह मत तरहीं? _ ऋचः प्ले भय्या चालऋ गया 1 आप सब भो सन में भक्ति के सह फार से रामनाम भजन फर---राम चजे हित होश तम्हारा? | जा




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