पुस्तकालय संगठन एवं सञ्चालन | Pustakalaya Sangthan Avam Sanchalan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
श्यामनाथ श्रीवास्तव - Shyamnath Shriwastav
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सुभाषचन्द्र वर्मा - Subhashchandra Varma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० पुस्तकालय संगठन एवं संचालन
रखना तथा पुस्तकालय के नियमों का पालन करना प्रत्येक पाठक के लिए प्रावश्यक हैं ।
पाठकों को चाहिए कि जब तक भ्रत्यावश्यक न हो पुस्तकालय सचे विशिष्ट सुविधा प्राप्त
करने की चेष्टा न करे । सन्दर्म-प्रन्थों, पत्र-पत्रिकाप्रो प्रादि का अध्ययन पुस्तकालय भें ही
करें जिससे प्रन्य पाठक भी उनका उपयोग कर सकें ।
इस प्रकार राज्य, पुस्तकालय प्राधिकारी, कमंचारी तथां पाठक सभी मिल कर पुप्त-
कालय को एक भादर्श पुस्तकालय बना सकते हैं ।
प्रत्येक पुस्तक व प्रलेख को उसका पाठक मिले
भ्रत्येक पुस्तक व भ्रलेख को उसका प्राठक मिले, यद्यपि प्रथम सिद्धान्त के भ्रनुरूप
पुस्तकों के दृष्टिकोश मे प्रतिपादित हुम्रा है। परन्तु दूसरे अर्थों मे यह द्वितीय सिद्धान्त का
पूरक है। यदि दूसरे सिद्धान्त मे प्रत्येक पाठक को उसकी पुस्तक व प्रतेख दिलाने का
भादर्श या तो इनमे प्रत्येक पुस्तक को वांछित पाठक उपलब्ध कराने का धादर्श है। यह
सिद्धान्त इस बात की चेष्टा करता है कि पुस्तकालय में उपलब्ध प्रत्येक पुस्तक व प्रलेख
का उपयोग हो । इए ध्येय कौ पूति में पुस्तकालय कर्मचारी का भानु दायित्व है बही
पुस्तकालय में उपलब्ध प्रत्येक पुस्तक के लिए उचित पाठक खोज सकता है। ऐसा करने
में उसे ध्पने प्रशिक्षण के सम्पूर्ण कौशल का उपयोग करना पड़ता है। पुस्तकों तक पाठकों
का प्रवाघ प्रवेश, भ्नुवर्ग क्रम मे पुस्तकों व प्रलेखों को व्यवस्था, सूचीकरणा, प्रसार
सेवा, पुस्तक चयन, प्रसार काये, विशिष्ट व उपयोगी विभाग, पुस्तक प्रदर्शन तथा सन्दर्भ
येवा एष ध्येय को पूछ्ि मे सहायक है।
पाठक का समय बचाझो
पुस्तकालय विज्ञान का चतुर्थ सिद्धान्त “पाठक का समय बचाप्रो” पुस्तकालयाध्यक्षो
द्वारा प्रात्म-सपमित नैतिक सिद्धास्त है जिसने पुस्तकालय विज्ञान की सीमाझो को परिवर्तित
कर दिया है। इच्छित पुस्तक व प्रध्ययन सामग्री के उपलब्ध होने में देरी पाठक के सयभ
पर भाषात करती है ठथा इसमे प्रततोष को भावना का पैदा होना स्वाभाविक है। इस
पिद्धाम्त की पूर्ति के लिए पुस्तछालयाध्यक्षो ने प्रनेक विधिया भपनाई हैं दथा पुस्तक सग्रह तक
झवाध प्रवेश से लेकर पुस्तकों व सूचना स्रोतों के वर्गीकृत व्यवस्थापन तक का मार्ग तय
किया है। इनके मध्य भावश्यक प्रदर्शक यत्र प्च्छा व सुव्यवस्थित सूचीकरण, सदर्भ व
बाड़ मय सेवाएं तथा ऐसी पुस्तक प्रादान-प्रदान प्रणालियों को भपनाया है जिनके द्वारा
पाठक का प्रधिक से अधिक समय बचे |
परन्तु यतंमान में प्रकाशित सामग्री के विषफोटक दिन्दु सक पहुंच जाने के कारण पुस्त-
कालयाध्यक्षों का दायित्व भोर प्रधिक बढ़ गया है । म्राज ससार में 2000 पै 3000 पृष्ठ
प्रति मिनट की दर से प्रध्ययत सामग्री का ससार की ०0 से झधिक भाषाध्रों में प्रकाशन
हो रहा है। इतनी प्रधिक प्रध्ययद साक्ष्री को न तो कोई पाठक पढ़ सकता है और न ही
कोई पुस्तकालय क्र कर भ्रव्ययन के लिए उपलब्ध करा सकता है । इस सप्रस्या ने पुस्तकालयों
में बांड मय सेवाप्रो पर भत्यधिक जोर डाला है भोर भाज के उच्चतम पुस्तकालय वाड मय
सेवाएँ जिनमे डडेक्सिंग, एब्सट्रेंबिटय, व रिप्रोग्राफिक सेवाए' मुख्य है। हन सेवा कौ
उपयोगिता में वृद्धि करने के लिए पुस्तकालय सहयोग की घत्यन्त आवश्यकता है। इसही
भोर भी पुस्तकान्नयाध्यक्षों का ध्यान काफ़ी समय से स्प्राकषित है माज हमा ध्येय तो यह
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