सुदर्शन - सुधा | Sudarshan Sudha

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Sudarshan Sudha by श्रीयुत सुदर्शन - Shriyut Sudarshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कवि १९ अमरनाथ और भी घबरा गये। सुशीला को सुध आई, तो उसने आकाश सिर पर उठा लिया। उसका करुण-विलाप अमरनाथ के घावों पर नमक का काम कर गया। उनको साहस न हुआ कि उसको ओर देख सकं | उसका रुदन हृदय का चीर देनेवाला था, जिसका सुनकर उनकी आत्मा অহা उठी । उन्होंने जेब से सौ रुपये के नोट निकाले और उसके हाथ में देकर ऐसे भागे, जेसे कोई बंदूक लेकर डनके पीछे आ रहा हो । यह दृश्य उनके कोमल हृदय के लिए असह्य था। घर जाकर सारी रात रोते रहे । उनका इस बात का निश्चय हो गया कि कवि की स्लो इस मृत्यु का हेतु জুল समझ रही है। अतएवं उसके सामने जाते हुए डरते थे। सहानुभूति का सच्चा भाव ठे वहम को दूर न कर सका | कई दिन बीत गये। अमरनाथ के हृदय से कवि की असमय और दुःखमय मृत्यु का शोक मिटता गया ! घायल हेंदयों के लिए समय बहुत गुणकारी मरहम है। प्रात:काल ` था । प्रेस-कर्सचारी “दर्पण” का अन्तिम मरक लेकर आया । उसमें कवि की कविता थी , अमरनाथ के घाव हरे हे! गये | कवि प्राय: कहा करता था किक्वि की सन्तान उसकी कविता है, अमरनाथ को यह कथन याद आ गया । कवि को कविता देखकर उनको वही दुःख हुआ जो किसी प्यारे मित्र के अनाथ बच्चे का देखकर हो सकता है। उन्होंने ठण्डी सॉस भर कर प्रूफ देखना आरम्भ किया । कविता से नवीन रस




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