सराय | Sarai

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sarai by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पहाड़ी - Pahadi

Add Infomation AboutPahadi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सराय बहुत डर लगता है । मेरी हालत पर रहम खाओ्रो | मैं ओर कुछ नहीं माँगूगी | यहाँ मेरा श्रपना सगा कोई नहीं है । अक्लेलो केसे रद्द सकतो हूँ !इस दुनिया में किसी पर मुझे विश्वास नहों दै । आ्राप शक्तिशाली हैं । आप की संरक्षता में पड़ी रहूँगी । “वह पछाड़ खा, गिर कर वेहोश हो गई । आजीवन का ठेका ! मुझे बहुत हँसो अई । यह घटना रेखा से जीवन-प्रसाद पाने के ब्राद की है | वहाँ बार-बार रेखा की याद आ्रातो थी। मन में एक उलभन और गांठ पड़ गई | दिल में एक जगह खालो होती जान पड़ी । मैं उस लड़की की तुलना रेखा से करने लगा । उस युवती का शरीर रेखा से स्वस्थ था | किर भी उसको श्रपने मे जगद देने वाला भाव जाग्रत नही हुआ । दिल में कोई कहता था, कार क्रि तू रेखा होती ! “रेखा का एक व्यक्तित्व है। वही उसका आकर्षण है | वही धमंड़ और प्यार करने का लोभ है। वास्तविक रेखा, उस लड़की से सुन्दर नहीं है । नारी नाम द्वी उतके अंगों को अपनाने को पूर्णता नहीं है | उन अ्रंगों की तुलना कर सकते हैं | उनकी साथंक्रता और रोचकता पर अधिक विचार करना निरथंक दोगा । लेक्रिन एक नारी जो कि मुक्त है ओर बार-बार चुनौती देती है। उससे खिलवाड़ रचने में अ्पूर्व आनन्द आता है। उसे छेड़ने, परखने तथा उससे श्ंख-मिचौनी खेल लेने का सबक सीखना बुरा नहीं लगता। रेखा की बातों में लोच है, शरीर में अदा है, उम्र में नमक है, वह बहुत प्यारी लगती है । उसे बार-बार प्यार कर लेने के लिए. मन तड़पता है। उसको अपने निकद पा लेने के लिए. मन उतावला हो उठता है | उसके दृदय को खोल, नया स्कं पदु लेना कौन नहीं चादेगा । वद कुछ नहीं कदेगी । उमकदार होने पर उसका कोई श्रनुरोघ नदीं होता है। जसे कि उखे १६ -




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now