सराय | Sarai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
916 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सराय
बहुत डर लगता है । मेरी हालत पर रहम खाओ्रो | मैं ओर कुछ नहीं
माँगूगी | यहाँ मेरा श्रपना सगा कोई नहीं है । अक्लेलो केसे रद्द सकतो
हूँ !इस दुनिया में किसी पर मुझे विश्वास नहों दै । आ्राप शक्तिशाली हैं ।
आप की संरक्षता में पड़ी रहूँगी ।
“वह पछाड़ खा, गिर कर वेहोश हो गई । आजीवन का ठेका !
मुझे बहुत हँसो अई । यह घटना रेखा से जीवन-प्रसाद पाने के ब्राद की
है | वहाँ बार-बार रेखा की याद आ्रातो थी। मन में एक उलभन
और गांठ पड़ गई | दिल में एक जगह खालो होती जान पड़ी । मैं उस
लड़की की तुलना रेखा से करने लगा । उस युवती का शरीर रेखा
से स्वस्थ था | किर भी उसको श्रपने मे जगद देने वाला भाव जाग्रत
नही हुआ । दिल में कोई कहता था, कार क्रि तू रेखा होती !
“रेखा का एक व्यक्तित्व है। वही उसका आकर्षण है | वही
धमंड़ और प्यार करने का लोभ है। वास्तविक रेखा, उस लड़की से
सुन्दर नहीं है । नारी नाम द्वी उतके अंगों को अपनाने को पूर्णता नहीं
है | उन अ्रंगों की तुलना कर सकते हैं | उनकी साथंक्रता और
रोचकता पर अधिक विचार करना निरथंक दोगा । लेक्रिन एक नारी जो
कि मुक्त है ओर बार-बार चुनौती देती है। उससे खिलवाड़ रचने में
अ्पूर्व आनन्द आता है। उसे छेड़ने, परखने तथा उससे श्ंख-मिचौनी
खेल लेने का सबक सीखना बुरा नहीं लगता। रेखा की बातों में लोच
है, शरीर में अदा है, उम्र में नमक है, वह बहुत प्यारी लगती है ।
उसे बार-बार प्यार कर लेने के लिए. मन तड़पता है। उसको अपने
निकद पा लेने के लिए. मन उतावला हो उठता है | उसके दृदय को
खोल, नया स्कं पदु लेना कौन नहीं चादेगा । वद कुछ नहीं कदेगी ।
उमकदार होने पर उसका कोई श्रनुरोघ नदीं होता है। जसे कि उखे
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