आधुनिक संस्कृत-नाटक : भाग 2 | Adhunik Sanskrit Natak : Bhag-2

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Adhunik Sanskrit Natak : Bhag-2 by रामजी उपाध्याय - Ramji Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भद्रे आपुतिक-संस्कृत-नाटक सूर्य के शाप से मुक्त होने के लिए वे वंशज महालद्षमी की आराधना करके समृद्धिद्याली राजा हो चुके थे। कुशघ्वज को पत्नी मालावती की पुत्री लक्ष्मी की कलारूपिणी वेदवती उत्पन्न ई । वह सूतिका-गृह से नारायणपरायण बनकर तपो- वन चली गर्द 1 उसे देववाणी सुना पड़ी कि अगले जन्म में विष्णु तुम्हारे पत्ति होंगे । तब बेदवती मे वहाँ से हटकर गन्धमादन-पर्वत की गुहा में फिर घोर तप करता आरम्भ किया | वहाँ रावण आया और उससे प्रेम की बातें करते लगा। उसके मे धोलने पर उसका हाथ प्रकड लिया। वेदवती ने क्रोध किया तो डरकर बोला कि देवि ! मेरे अपराध क्षमा करे । वेदवती ने उसे शाप दिया कि मेरे छिए तुम सपरिवार विघ्वस्त हो जाओो | यह कह कर वह मर गई । धर्मध्वज की पत्नी भाधवी ने अतिगुन्दरी कन्या को जन्म दिया, जिसका तामि तुलसी रखा गया, क्योकि वह्‌ अतुत्य सुन्दरी थी। वह बर पाने के लिए ब्रह्मा की आराघना-हेतु बदरिकाथ्रम जा पहुंची । उसने एक छाख वर्ष तप किया | ब्रह्मा उसे देखने आये । तुलसी ने अपने पूर्वजन्म की कथा बताई कि मैं तुलसी नामक कृष्ण की गोपी थी । मेरी प्रणयात्मक कृष्णासक्ति से कुद्ध राधा ने द्प दिया कि तुम मासूप थोनि में बली जा । कृष्ण ने कहा कि फिर ब्रह्म की आराधना से तुम मेरी बन जाओगी । ब्रह्मा ने कहा कि कृष्ण का पार्यद योप सुदामा বাঘা ঈ হায় উ হারদুত नामेक दानव है! तुम तो उस मेरे आराघक की एनी कठ दितो के किए वन जमो । तुम दोनों शाप से मुक्त होकर श्रीकृष्ण को प्राप्त कर लोगे ! छुम बृर्द्वावत में तुलसी नामक श्रेष्ठ वृक्ष बनोगी । तुम्हारे बिना मयवान्‌ क्ी यूजायूरीन होगी। , द्वितीयाडु: के अनुसार तुलसी के योवव-कालछ मे एक दिने मकरध्वज मे उस् पर पुष्प बाश को प्रहार किया ) उसने स्वप्न में किसी सुन्दर वर का दर्शव किया था । वह धंखचूड था । उसे दूसरे दिन आंध्रम के प्रमीप साक्षात्‌ देखा । शंख भी उस पर ' मोहित था। उन दोनों की प्रेमासक्त बातें हुईं । ब्रह्मा ने उनसे कहा ,कि गास्धवे विवाह तुम दोतों कर लो । फिर तो: स शंखचूडो विधिवावयमाद रात्‌ गृह्न॒त्‌ तुलस्याइनो विधिवदु विवाहकस्‌ 1 चकार गन्धरवमयुग्मवाणजां पीडां मना मनसा गृहीतवानु॥ शखसूड दुखी के साथ राजाधिराज बनकर व॑मवशाली इभा 1 उसने देवो का ` ओ सरस्व अपहरण कर ल्या । देव इन्दर के पास पहुचे । इन्र गे कहा कि इसकी दबा तो ब्रह्मा ही कर सफेंगे। ब्रह्मा ने कहा कि मैं कुछ नही कर सकता । হান না पास जाओ | शिव ने कहा कि मैं मो अर्समर्थ हें। सभी हरि के पास चलें। वे बैकुण्ड लोक मे पहुचे। देवो मे विष्णु की स्तुति कौ-- वयं हि शंखपीडिताः प्रपीडिता: क्षुधावलात्‌ बलाहिते: स॒तं सुतेः सम जहीहि दानवम्‌ 1२३४ विष्णु ने एक হুল उन्हें दिया और कहा कि इसी से शिव उसका वध करेंगे ।




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