श्रीपालचरित्र | Shri Pal Charitra

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Shri Pal Charitra by मूलचंद किसनदास कपाडिया -Moolchand Kisandas Kapadiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ओपाछ चरित्र | [ ৫৮ श्रीषालका হাজনিভ্বজ জীহ राजा आल्छिजनबका ऋाछवबुझ होता) ॐ क समय राजा अरिदमन समां बैठे थे कि इतनेमें | ৪ श्रीपालक्ुमार भी समामे सये, जौर योग्य विनयकरं @ ~~ यथास्थान वैर मये । उस समय राजाने अपनी वरद्ाजस्या ` और श्रीपाल्कुमारकी सुयोग्यता देखकर तथा इनके अतुरू पराक्र न्यायशीरुता, और शूखवीरतादि गुणोंसे प्रसन्न होकर इनको शज- तिलक देनेका- निश्चय कर लिया। ओर शुभ मुहर्तमें सब राजभार इनक़ो सोपकर साप एकांतवास करने तथा धम्मध्यानमें कालक्षेप करने लगे ) थोड़े ही समय वाद बृद्ध राजा अरिदमन कालवश हुए | जिससे राजा श्रीपाछ, इनके काका बीरदगन, तथा माता कुन्द- प्रभादि समस्त स्वजन तथा पुरजत शोकसागरमें डूब गये । चारों ओर हाहाकार सच गया, तव बुद्धिमान राजा श्रीपालने पुरजनोंको ` अत्यन्त शोकित देख बेये ( साहस } धारण कर सवक्रो संारकी दशा और जीव-कर्मका सम्बन्ध इत्यादि समझाकर संतोपित किय उन्होंने कहा कि झुृध्यु तो मर पिशाकी हुईं है, तुम्हारे पिता तो हम डपस्थित ही हैं. अतएव पित मे. राज्यमें जिसग्रश्नार आप छोग सुख शांतिसे रहते थे, वैसे ही रहेंगे, में शक्तिभमर आपको खुखी करनेका प्रयत कर्णा जर्‌ साध सी व्यायपूवैक मेरी सहायता करेगे इ्यादि ] इ्रके अनन्तर वे राज्यकामं दतचित्त हुए । चारय दिशाय जपने वुद्धिवरु तथा प्रक्रमते जगने न्यायी तथा प्रजा- 2 | 18 “




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