सत्य उपदेशमाला | Satya Updeshmala

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Satya Updeshmala  by राजपाल - Rajpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८) सुंसलमान ने ओप पर थार किया। 'छुरे से &ः ज़्द़म किये, परन्तु ईश्वर जनं चचा ली । ६ श्र्वदवर १६२७ को सी दुकान पर “अब्दुल प्रज्ञीज” ने हमला किया । चह भूंज से स्वामी 'संत्यानन््‌ जी मंहाराज पर हो गंया | भाप बच गये, पंरन्तु यह भूख, मतान्ध लोग कय गवारा फर संकते थे कि एक आयेबीर ইহা, অম ध्रौर जाति कौ सेवा कर सके । ६ अप्रैल १४२६ पी दो बजे दिन के “इलमदीन” नामक त्रखान नौजवान ने श्रय पर दुकान के परन्दर धे हुए ध्याकरपरण किया । छुरा ऐसी तेंज्ञी ओर बल से कछ्वाती पर भारा, कि तत्त्रण भाण पसर शसीर से झड़ गये और धयाप हमेशा के लिए हम से जुदा हो गये । आप के पीछे आप की धर्मपत्नी और बहुत छोटे २ রই यथ्ले निःसद्याय रंह गए हैं। आप ी माता बहुत লিন श्रौर घयोचद्ध हें, जो पुत्र के शोक में निमग्न हैं। ` दिकं सम्बन्धी सय भकार की पुस्तकें | मिलने का पता-... . राजपाल पएरड सनन्‍्ज़, : सरस्वती आश्रम, अनारेफेली; लाहोर ।




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