कुत्ते की मौत | Kutte Ki Maut

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Kutte Ki Maut by प्रदीप - Pradeep

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मिम्रेड जोशी की आँखों के सामने नीचे के पलैट वालों का कुत्ता उभर आया। सफेद, झदरा, घूवसूरत, सेकिन डरायना । भौफता है सो वह स्वय डर जाती हैं और सीढियाँ उतरते-उत्तरते शक जातो हैं या ऊपर की ओर भाग जाती हैं। नीचे के पेट याली मिसेज बत्ता उसे बड़े प्यार से रखती हैं अपने बेटे की तरह। रात को सोने मे लिए एक अलग घदीला चनवाया हुआ है और उस पर गद्ा और ओइने के लिए रेशमी रजाई। मिसेज बत्रा प्राय. बड़ें गये से पहतो हैं, “इस नस्ल थे। कुत्ते इडिया में नही मिलते ! बाहर से इन्होने अपने एक दोस्त से मेंगवाया था ! सचमुच दूर बहुत दूर से आया था उनका युत्ता नीतोफर। और यह लक्ष्मी? यह लक्ष्मी भी तो दूर, बहुत दूर से आई है--पूर्वो उत्तर प्रदेश मेः किसी घूलि-धूसरित गाँव से कमला और अपनी मा और पैतीस-घातीस की उम्र मे ही बुढा गए अपने बाप येः साथ ! बाप, जो पिछोो दस गांत में भी इस दिल्‍ली शहर में घिर ढकने के लिए ठीक से एक झोंपडो का जुगाड़ नही कर सका है। जहाँ जिस ठेकेदार के साथ नई इमारत गगाने के फाग में लगता है, वही चद महीनों बे लिए झोपडी वन जाती है और फिर इगा- रत बनती है और झोपड़ी टूटती है। और इमारत में लोग कारों में सद कर बच्चो, बिल्ली, परमोश या कुत्तो ये साध आते है और ये धझोपड्टी यारे जाते हैं। जाते नही निकाले जाते हैं। लक्ष्मी का बाप भी मिफाला जाता है, और फिर जिस नई जगह में जाता है, वही असस-पारा की फोटियों और पदों में उसकी बीवी और बच्चे बरतन माँजने और झा ड़ -युहारी करने में जुद जाते है। लक्ष्मी भी काम में जुट गई थी और मिसेज् जोभी पूछ रही थीं, “कमला को कटी किसी डाक्टर के पास दियाया ?” “नही, बस ऐसे ही पट्‌ठी बाँध दी थी, थोड़ा सा ही यून आ रहा था। डाक्टर इत्ते से खून को रोकने के ढेर मारे पैसे ले लेते। दत्ते पैरो बाहों हूँ हमारे पास !” लक्ष्मी ने बड़े भोलेपन से जयाब दिया । मिसेज जोशी की समझ में नही आया कि उससे यया कहे ? कैरी उसे बताएँ कि कुत्ते के काटे का इन्सान कभी-यभी मर भी जाता है, पागल तो अक्सर ही हो जाता है, कि एक-दो नहीं चौदह इंजेगशन भी लगाते पड़े कुत्ते की




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