भाषा - विज्ञान पर भाषण | Bhasha - Vigyan Par Bhashan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
80 MB
कुल पष्ठ :
399
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अन्य विज्ञानों के समान भाषा का भी विज्ञान है ११.
कीमियागिरी तथा फलित ज्योतिष की दशा को पहुँच जायँगे। अब तक मिस्र का
यह विज्ञान (कीमियागिरी) अपने रहस्यमय नुसखों से बिचारे रोगियों को
भला होने की आशा देकर उत्तेजित करता रहा (यहाँ मैं प्रसंगवश, पाठकों को
बताऊगा कि प्रसिद्ध फ्रेंच वैज्ञानिक शाम्पोलिओं ने हमारे डाक्टरों के विचित्र
नुसखो का पता कगाते-लगाते सिद्ध किया है कि इनके रहस्यमय अस्पष्ट संकेत
লিজ की पाच हजार वषं पुरानी असली पुरोहिती (535:9815105) लिपि
तक पहुंचते हैं।) और जब तक इस कीमियागिरी ने सोने का आविष्कार
करने की आशा से अपने संरक्षकों अर्थात् हिमायतियों के लालच की भावना पर
सान चढ़ाने का काम किया, तब तक यह राजा-महाराजों के दरबारों तथा ईसाई
सठों के भीतर दिन दूनी रात चौगुनी पनपी। यद्यपि कीमियागिरी ने सोने का
आविष्कार न किया छेकिन इसने उन आविष्कारों का मार्ग प्रशस्त कर दिया जो
अधिक मूल्यवान् थे। यही बात फलित ज्योतिष के बारे में भी कही जा सकती है।
फलित ज्योतिष उतना धोखा-घड़ी का काम नहीं था जितना साधारणतः समझा
जाता है। यह मेलान्ब्थौन जैसे गंभीर और स्वस्थ दिमाग के विद्वान् हारा विज्ञान
माना गया है और स्वयं बेकन इसे विज्ञानों में स्थान देता है; भले ही उसने यह भी
कहा है--- इस विज्ञान का अधिक संबंध मनुष्य की कल्पना के साथ रहा है, विचार-
. शक्ति के साथ कम।' लूथर द्वारा फलित ज्योतिष का घोर तिरस्कार और निदा
किये जाने परब्भी, यूरोप के भाग्य का निपटारा इसी ज्योतिष द्वारा होता रहा;
और लूथर के सौ साल बाद फलित ज्योतिषी राजा-महाराजों और सेनापतियों के
मंत्री औरू सचिव बन गये। तमाशा देखिए कि गणित ज्योतिष की नींव डालनेवाला
घोर दरिद्रता और निराशा में मरा। हमारे समय में फलित ज्योतिष का नामो-
निशान मिटने पर है।' असली और उपयोगी कलाएँ, जब वे काम की नहीं रहतीं,
१. बनसेन कृत 112ए]00 खंड चार पृ० १०८।
२. नोटस ऐंड क्वेरीज्ञ (९०1८४ 870 (प्रटतट३, 27वें इटातट४ ए०. 5 9.
500) के अनुसार फलित-ज्योतिष का पूर्णतया लोप नहीं हो गया है, जेसा कि अपना
विचार है। वह लिखता है--इस समय हमारे एक बहुत बड़े बेरिस्टर तथा पुरा-
तत्व को श्लोध करनेवाली कई संस्थाओं के सदस्य देवन्ञ या फलित-ज्योतिषी हे ।
कितु कोई भी अपने इस ज्ञान का नाम मात्र विक्ञापन नहीं करता! इसका कारण
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