मारवाड का इतिहास भाग - 2 | Marawad Ka Itihas Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
141 MB
कुल पष्ठ :
410
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध)
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मारवाड का इतिहास
उस समय मारवाड़ के बहुत से सरदार आकर इनकी सेत्रामें उपस्थित हो गए और जब
वहां पर उनकी तरफ़ से नज़र निछावर हो गई, तब मानसिंहजी की तरफ़ से भी उन
सब का यथोचित आदर-सत्कार किया गया | मंगसिर वदि ७ ( ५ नवंबर ) को यह
जोधपुर के किले में प्रविष्ट हुए | इस पर पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह ने नित्रेदन किया कि
स्वगवासी महाराजा भीमसिंहजी की एक रानी ( देरावरजी ) गर्भवती है | यदि उसके
गर्भ से पुत्र उत्पन्न हुआ तो उसके लिये आप क्या प्रबंध करेंगे | यह सुन मानसिंहजी
टरिः
ने उत्तर दिया कि ऐसा होने पर माखाड़ का आधा राज्य उसे देदिया जायगा और हम
जालोर लौट जार्यैगे । परंतु इसके लिये बालक का जन्म होने तक भीमसिंहजी की उस
रानी को किले में रहना होगा | यह शर्त सवाईसिंह ने न मानी | इसीसे मानसिंहजी
उससे नाराज़ हो गए |
इन दिनों मुगलों ओर मरहये का प्रभाव न हो जाने से अंगरेजों की ट्ट
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मरहटो के बीच युद्ध हो रहा था | इससे वि० से १८६० की पौष दि €
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बाद, कातिक वदि ३० (दीपोत्सव ) ( १५ अक्टोबर ) को, जालोर का किला खाली
कर देने का है, इसलिये तब तक युद्ध वरद् रक्खा जाय । यह बात सेनापति सिंधी इंद्रराज ने
मानली । परन्तु अन्त में आयस देवनाथ के कहने से मानसिंहजी ने कुछ दिन और भी
किले मे रहना स्थिर किया । इसी ब्रीच, कार्तिक सुदि ४ (१६ अक्टोबर) को, महाराजा
मीमसिंहजी का स्व्गवास हो गया | इस पर भीमर्सिहजी के धायभाई शंभुदान, भंडारी
शिवचद, और मुहणोत शानमल आदि ने सिंधी इंद्रराज को लिखा कि एक तो स्वरगंवासी
महाराज की एक रानी गर्भवती है, दूसरा पोकरन-ठाकुर सवाईसिंह अब तक अपनी
जागीर से लौट कर नहीं आया है, इसलिये किले का घिराव न उठाया जाय | परन्तु
सिंधी इंद्रराण और भंडारी गंगाराम ने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया श्नौर तत्काल युद्ध
बंदकर मानसिंहजी से जोधपुर चलने की प्रार्थना की | इन्होंने भी उनकी प्रार्थना स्वीकार
` कर उनकी तसल्ली की म्रौर उन सरदारों के नाम भी, जो महाराजा भीमरसिंहजी द्वारा
मारवाड़ से निकाल दिए जाने से कोटे में थे, खास रुके भेज कर उन्हें लोट झाने का
लिखा |
१, मानसिंहजी के जोधपुर पहुँचने के पूर्व ही पौकरम-ठाकुर की सलाह से स्वर्गवासी महाराजा
भीमसिंहजी की रानियां (देरावरजी और तुँवरजी ) ( ग़ुसाईजी की जागीर के गांव)
चौपासनी चली गै थीं | इसकी ख़बर मिलने पर मानसिंहजी ने सवाईसिंह को অলম্দা
कर उन्हें वापस बुलवा लिया | परन्तु यहां आने पर सवाईसिंह ने उनका निवास किले
के बजाय नगर के बीच तलहदी के महलों में करवा दिया
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