गुरुमुखी लिपि में हिन्दी - साहित्य | Gurumukhi Lipi Men Hindi - Sahity
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
476
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अमुख पजाव मे हिन्दी
प्र+ तक भ्रामतौर पर लोगो की यही धारणा रही है कि पजाव पजाबी
श्रौर उदू फारसी का ही क्षेत्र रहा है और जब हम हिंदी भाषी क्षेत्र वो बात
দে हैं तो उसम मुण्यत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्था। हरियाणा और
बिहार आदि प्रदेशो वी ही गणना करते है । पजाब को अहिदी भाषी प्रदेश
ही मानते रहे है । हिंदी के उद्भट विद्वान डा० লীন ন
एक स्थान पर लिखा था कि पजाय हिंदी भाषी प्रदेश से बाहर पडता था,
इसलिए यहा हिन्दी-साहित्य सृजन वा काय नही हुआ । इधर नवीनतम खोजो
मे यह सिद्ध कर दिया है कि हिंदी भाषी क्षेत्र के अतिरिक्त गुजरात,
महाराष्ट्र, बगाल श्र झसाम में भी १०वी शती से १६वी झती तक प्रचुर
परिमाण म हिन्दी-साहित्य वी रचना हुईं। बगाल में “ब्रजबूली' नाम से जो
साहित्य प्रचलित है वह उसी ब्रजभाषा से सम्बाधित साहिय है जिसम
ब्रजमडल मे कृष्णलीलाओो का मधुर गान भु जरित हम्मा | महाराष्ट्र के सत कवि
ज्ञानदेव तथा नामदेव ता प्रसिद्ध है ही, इनके अतिरिक्त और भी क्तिने ही
ऐसे कवि हुए हैं, जिहाने अपनी प्रमूल्य काव्य-हृतिया से हिन्दी साहित्य को
समृद्ध करिया है । ग्रुजरात के भी कुछ हिंदी ववि प्रकाश मशझाये है जिन्हाने
गुजराती लिपि के माध्यम स हिन्दी साहित्य का सृजन क्या। अड्नमे झखाजी
तथा गोबिन्द मिलाभाई का नाम उल्लेसनीय है। दालिणत्य कविया मे काव्य
वी एक विशिष्ट “मणिप्रवाल' शली प्रचलित है जिसमे एक पद म विभिन्न
भाषाओं वी मणिया भ्ुम्फित रहती है और उनमे हिंदी भी एक थी । सुदूर
दक्षिण मे तजीर के पुस्तकालय मे झ्राज भी दविड भाषाओं वी लिपिया म हिदी
5 हैं। च्रावणवोर के महाराजा स्वातिताल ब्रज भाषा के एक
। पजाव में तो सकडो वी सख्या म॑ हिंदी के ऐसे साहित्यकार
हुंए हैं जि हनि न केवल हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध क्या वरन् असने
माध्यम से जन-जागरण श्रौर सास्दृतिक चेतना ने परभ्युदय का काय मी व्या
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