गांधीजी की जीवन दृष्टि | Gandhiji Ki Jivanadrishti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उनके सामने नहीं था। परदेश जाते समय माँने जो तीन ब्रत उन्हे दिलवागें ये उनमें से ही सत्य और अहिंसा प्रगट हुई। इसीलिए बापूने बरद्दोपर बहुत जोर दिया है। अपनी कमजोरी दूर करनेके लिए ब्रत लेने चाहिये । बापू दूसरोकों जीवनमर ब्रत दिलवाते रहे । सत्यपर चलते चलते ही उन्होंने यह ध्व प्राप्त किया। जीवन ब्रतपाऊनते ही वनता है! चोरी भी उन्होने को थी लेकिन सत्य बोलनेके आग्रहके कारण उन्होने उसे क़यूल किया। हम भूल कबूल करनेके लिए तैयार नही रहतें। चोरी कौन नही करता ? चोरी तो सब करते ह। भाप यह स्वीकार न करे यह दूसरी वात है! में तों यह नहीं कह भकता। स्कूल जाते समय दूसरोके आमोंके आम तोडकर खाता था तब यह नहीं मालूम था कि यह चौरी है। लेकिन उससे यह नहीं कहा जा सकता कि यह बुरा नहीं है। गाधीजीने जो गलती की वह अपने भाईके लिए की फिर भी उत्होने अपनी भूल मान लो। हिम्मत हामिल करनेका यह तरीका है। निश्चम हो तो सब कुछ हो सकता है। उनकी जो जीवनदूष्टि है वह इस तरहसे साफ दिखाई देती है । उसे हमें अपनाना है या हम जैसे हे वैसे ही कोरे रहना है? उनकी दृष्टि कल्योणकारी, शक्तिदाबिनी है। यह नहीं है कि मेहनत करनेपर वह प्राप्त न हो। लेकित एक दिनमें आदमी यह सब प्राप्त हूह्दी कर सकता, फिर भी बह चाहे तो एक क्षणमें ईश्वरकों प्रष्त कर सकता है। आदमी गिरता पडता रहे मगर वह सत्य मार्गपर चले तो उसकी उन्नति होती ही है। उसे ईश्वरके पाससे झक्तिकी योचना करनी चाहिये। ईश्वरकी शरणमें जायें तो उसे कुछ भी कठिनाई नहँ। रहती । बापूने कहा है कि सत्य ही ईश्वर है फिर सत्यका महारा छिये बर्गर आदमीकी उन्नति कंसे हो? हर एक चीज़की कीमत तो चूकानी ही पहती है। सुख्ल या दु ख कोई भी चीज़ या कीति -- कुछ भी बगेर कीमत चूकाये नहीं मिलता । बापू अपने जीवनमें कीमत चूकानेकी बात पहले करते थे । इसके लिए जागृत रहते थे और उनकी सुबवुष कभी मगुद्ध नही इई । (ना. १६-१०-६४की शामको ्ार्यनाका प्रवचन ।} ९




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