जैन सिध्दान्त | Jain Sidhant

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Jain Sidhant by सिद्धान्ताचार्य पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री - Siddhantacharya pandit kailashchandra shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अधिक श्रद्धा कराने में कारण अहन्त ही हैं। यदि अहुँन्त न होते तो हम लोगों को आप्त-आगम और पदार्थों का ज्ञान नहीं होता । अहुन्त के प्रसाद से ही हमें उतका ज्ञान प्राप्त हुआ है। इसलिए उपकार की अपेक्षा अहँस्तों को प्रथम नमस्कार किया है। ऐसा पक्षपात बुरा नहीं है, अच्छा पक्ष लेना कल्याणकारी होता है। तथा आप्त की श्रद्धा आप्त-आगम और पदार्थ विषयक श्रद्धा को दृढ़ करती है यह बतलाने के लिए भी अहुन्तों को प्रथम नमस्कार किया है। जैन सिद्धान्त / 5




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