सप्तर्षि | Saptarshi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)_मगवान् तिलक । লিজ ।
के कारण तिलक पर मु ऋदमा चछाया गया था उसमें से कोई
भी उनका लिखा नहीं था । ऐसौ दशा में थदि वे चाहते तो
मुक्त दो सकते थे। किन्तु उनका कदापि यह स्वभाव नहीं था
कि सकट के भय से भीरु बन कर अपने उत्तरदायित्व को
दूसरे के सिर मढ़ पने अलग हो जय । भगवान ने सहर
जेज्ञ यात्रा खीक्रार को |
पुना का प्रसिद्ध फर्गुसन कालेज |
न्यू इंलिश स्कूल की उत्त रोतर उच्नति देखकर संचालक
का मन बढ़ा | चार वर्ष की काय-प्रणाली को देखकर इच्छा
यद हुई कि स्कूल को कालेज का स्वरूप दिया जाय । कालेज
धनाने के जिए घन जन दोनो का पर्यापत सप्रह परम आवश्यक
था। फततः विचार उठते दी संचालकों ने इस काम के लिये
लोकमान्य निलक और श्रीयुत नामजोशी का नाम लिया ।
प्रवन्धभार इन्हीं दोनों सजनों को सोपा गया। ছল লীনাল
दत्तिण में कोई पचास हज़ार की रकम एकत्र की । तत्यश्धाल्
इस काम के जिए दत्तिण -शिक्ता -समिति नाम कीक सद्या
भी स्थापित की गई । स्या के निधम लोक्षमान्य ने तेयारः किये ।
कमेटी ने उन्हें एक कंठ से स्वीकार किया | फत्र यह हुआ कि
सन् १८८७ ई० में, चंद्रदा ताओ के इच्छाउुसार बंबई के तत्का-
लीन गवंनर सर जेस्न फर्गुसन की जन्म स्मृति में पूना के
प्रसिद्ध फपुसन कालेज का जन्म हुआ ।
दो बरस तक तो कालेज का काम निर्विघ्न चलता गया |
किन्तु दो वर्ष का श्रन्त होते हो कालिज में मतभेद ने जन्म लिया |
कतिपय कारणों से लोऋमान्य तिलक ने कालेज से अपना
सम्बन्ध रखना ठीक नहीं समझा | अतः १८६० ६० में त्याग-पत्र
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