हिंदी रीति परम्परा के प्रमुख आचार्य | Hindi Riiti Prampara Ke Pramukh Aacharya

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Hindi Riiti Prampara Ke Pramukh Aacharya by सत्यदेव चौधरी - Satyadev Chaudhary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ২২ ) ओर संख्या; [दोषों का स्वरूप--शब्द, वाक्य, श्मथं ओर रसगत दोष; दोष-परिद्वार; उपसंहार] तुलनात्मक सर्वेक्षण ५३५ अष्टम अध्यायः गुण ५१३७-५६ ५ पृष्ठभूमि--संस्कृत-काव्यशाख्त्र में गुणु-निरूपश ५२३७-४६ ० : [गुण-निरूपण में वैविध्य; गुण का स्वरूप (५३७. ५४०)--भरत, दण्डी, वामन, श्रा नन्दवद्धंन, मम्मट और विश्वनाथ; गुण-निरूपक आचाये और गुण के प्रकार (४४०); गुणों का स्वरूप (५४४); गुण और संघटना में आश्रयाश्रित भाव (४४६) गुण का रसघमंत्व (६५४२) ] (१) चिन्तामणि का गुण-निरूपण ५५७ [गुण-निरूपण का आधार; गुण-विषयक धारणाः मम्मट-सम्मत तीन गुण; वामन सम्मत * गुण; उपसंहार] (२) कुलपति का गुण-निरूपण ५७० [गुण-विषयक धारणाएं; गुणों का स्वरूप; रस तथा वर्णादि का विपरीत प्रयोग; उपसंहार ] (३) सोमनाथ का गुण-निरूपण ५७५ [सोमनाथ से पूर्व--देव, चरतिमिश्र, ओर श्रीपति । ' सोमनाथ--गुण का महत्त्व; गुण ओर अलंकार में भेद; गुणों का स्वरूप; उपसंहार | (४) भिखारीदास का गुण-निरूपण | ५८० [गुण-विषयक धारणाय; गुणो कौ संख्या; दश्गुण - स्वरूप, वर्गीकरण, दशगुणों की अस्वीकृति; तीन गुण; उपसंहार | (५) प्रतापसाहि का गुण-निरूपण ५६२ : [प्रतापसाहि से पूवं--जगतसिंह । ५९१ प्रतापसाहि--गुण-विषयक ,धारणाएँ; गुणो का स्वरूप, वशणांदि का विपरीत प्रयोग; उपसंहार ५९५ तुलनात्मक स्वक्षण




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