हिंदी रीति परम्परा के प्रमुख आचार्य | Hindi Riiti Prampara Ke Pramukh Aacharya
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
49 MB
कुल पष्ठ :
778
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सत्यदेव चौधरी - Satyadev Chaudhary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ২২ )
ओर संख्या; [दोषों का स्वरूप--शब्द, वाक्य, श्मथं
ओर रसगत दोष; दोष-परिद्वार; उपसंहार]
तुलनात्मक सर्वेक्षण ५३५
अष्टम अध्यायः गुण ५१३७-५६ ५
पृष्ठभूमि--संस्कृत-काव्यशाख्त्र में गुणु-निरूपश ५२३७-४६ ०
: [गुण-निरूपण में वैविध्य; गुण का स्वरूप (५३७.
५४०)--भरत, दण्डी, वामन, श्रा नन्दवद्धंन, मम्मट और
विश्वनाथ; गुण-निरूपक आचाये और गुण के प्रकार
(४४०); गुणों का स्वरूप (५४४); गुण और संघटना में
आश्रयाश्रित भाव (४४६) गुण का रसघमंत्व (६५४२) ]
(१) चिन्तामणि का गुण-निरूपण ५५७
[गुण-निरूपण का आधार; गुण-विषयक धारणाः
मम्मट-सम्मत तीन गुण; वामन सम्मत * गुण; उपसंहार]
(२) कुलपति का गुण-निरूपण ५७०
[गुण-विषयक धारणाएं; गुणों का स्वरूप; रस तथा
वर्णादि का विपरीत प्रयोग; उपसंहार ]
(३) सोमनाथ का गुण-निरूपण ५७५
[सोमनाथ से पूर्व--देव, चरतिमिश्र, ओर श्रीपति ।
' सोमनाथ--गुण का महत्त्व; गुण ओर अलंकार में
भेद; गुणों का स्वरूप; उपसंहार |
(४) भिखारीदास का गुण-निरूपण | ५८०
[गुण-विषयक धारणाय; गुणो कौ संख्या; दश्गुण -
स्वरूप, वर्गीकरण, दशगुणों की अस्वीकृति; तीन गुण;
उपसंहार |
(५) प्रतापसाहि का गुण-निरूपण ५६२
: [प्रतापसाहि से पूवं--जगतसिंह । ५९१
प्रतापसाहि--गुण-विषयक ,धारणाएँ; गुणो का
स्वरूप, वशणांदि का विपरीत प्रयोग; उपसंहार ५९५
तुलनात्मक स्वक्षण
User Reviews
No Reviews | Add Yours...