पति परम गुरु है भाग 3 | Pati Param Guru Hai Vol III

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जगत -Jagat

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पुप्षा देयड़ा - Pushpa Deyada

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विमल मिश्र -Vimal Misha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पति परम गु 13 सुरैन ने जैसे कुछ मोचा । उसके बाद बोला, मै नगर न रह तौ किसी का कोई नुकसान नहीं है। कोई मेरे लिए न रोयेगा । लेकिन उसके सिर पर तो यूद वाप का, छोटी-छोटी बहनों का दायित्व भी है, उन्हें कौन देखेगा ?* देवेदा वोता, वह सव सोचने मे पाटी का काम नदी चलता। देदाका काम करने चलने पर झिन्दगी देना ही पड़ेगी, जिन्दगी देंने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। बया सोचा है कि विधान राय आसानी से गद्दी छोड देंगे ? में चलूँ...।' सुरेन देवेश के साथ वाहर सड़क पर निकल आया । संड्ढः पर घना अंधेरा और धुआं हो रहा था। पाटिशन के बाद से वरानगर के शरणाथियों की भीड़ वढ गयी है। जितने दिन बीतते जाते हैं उतनी ही भीड़ बढ़ती जाती है। कल इस वक़्त राह-धाट की दूसरी शबल होगी । इस घर में चार- पाँच सौ आदमी आकर ठहरेंगे। औरतें भी रहेंगी, आदमी भी रहेंगे। बस्ती में घोर मच जायेगा । सभी मिलकर आसमान फाइकर चीजेंगे--- “हमारी मांगें मानना होंगी, नही तो गद्दी छोडना होगी, छोड़ना होगी ॥ तू खव बयो जा रहा है, अब जा... स बोला, “हाँ रे, तेरे ऑफिस में मेरे मामा मेरी खोज-ओज मे गयेथे ?! दे देवेश बोला, 'कहाँ, कुछ तो नही सुना ।/ मुन बोता, 'जरूर गये थे । तू शायद उस वक़्त रहा नही होगा । शायद * मुरैन बोला, 'पुष्यश्लोक बाबू भी शायद खोजते होंगे। शायद माघव कुंडू लेन के घर तलाश करने लिए आदमी भी भेजा था ! मैंने अचानक जाना बन्द कर दिया था न! बात कहते हीं. माँ जी की वात याद आयी । माँ जी को बीमार छोड- कर आया था। माँ जी के लिए घनंजय डॉक्टर को थुलाने गया था। उप्के वाद कवा हुमा, कुछ पता नदी ) “तू और क्यो चला आ रहा है?! सुरेन बोला, “न, अब लौट रहा हूँ ।' “हां, कल सवेरे उठकर तैयार हो जाना। सवेरे से ही घीरे-घीरे लोग आना शुद् कर देंगे। दोपहर को मैं आाऊँ या कोई और आये, तु सबको लेकर जुलूस बनाकर कलकत्ता की ओर ले जाना । देवेश जल्दी-जक््दी चला गया। सुरैन उस ओ? कुछ देर तक देखता रहा । उसके बाद फिर लौट साया । रास्ते से ऑफिसो से लौटते मुंड-के-मुड




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