जीववृत्ति विज्ञान | Jeevvritti Vigyan

Jeevvritti Vigyan by डॉ ० महाजोत सहाय - Dr. Mahajot Sahay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शरीर-बविषयो कज्ञानेंद्रियां ११ पहले हम उन झानेंद्रियों को लेंगे जिन के विषय इमारे शरीर के दी विविध परिवतंन होते हैं । इन इंद्वियों द्वारा हमें शरीर-विषयी पता चलता हैं कि हमारे शरीर की क्या अ्रद्स्था झ्ानेंद्रियां. है, क्या स्थिति है, और हमारे शरीर में कहां क्‍या हो रहा है। हमारे शरीर में प्रति-क्षण, कुछ-न- कुछ ही नहों, बल्कि बहुत कुछ होता रहता है । बहत-सी बातों का इस बिल्कुल पता ही नहीं चलता, परतु बहत-कुछ देहक पण्वितन ऐसे हैं, जिन का हमे विशेष इंद्वियों द्वारा पता लगता रहता है । हमारे सिर में कानों के पास दोनों ओर एक-एक छोटी अ्रस्थि है। वह बड़ी पेचदार है ओर उस की रचना भी विचित्न অননুন্নাক্কাহ है। उस के एक भाग को शंखास्थि कहते हैं और नलिकाएं उस के दूसरे भाग को अ्रध॑वृत्ताकार नत्विकाएं । इस विचित्र अस्थि के बीच का भाग कुछ उभश हुआ होता डै। हम पहले अ्रधंबृत्ताकार नलिकाओं और इस अस्थि के उभरे हण मध्य-माग का वंन करेगे! श्रधरवृत्ताकार नलिक्राणं वास्तव मतो श्रधद्न आकार की नहीं होतीं, लगभग पूणबृत्त आकार की होनी हैं। परंतु इन का यही नास प्रचलित हो गया है। यद्द तीन नलिकाएं परस्पर मिली हुई तीन दिशां मे लगी है, माना एक नलिका पदी है और दो खड़ी हैं | एक खड़ी नलिका का रुख़ तो श्रागे-पीडे हे, दूसरी का दुाएं-बाएं । इन नलिकाश्रों में एक द्रव भरा रहता है । जब हमारा खिर द्ििलता हैं तो यह द्रव भी हिलता है | इस द्रव के हिलने से हमें अपने सिर के इलने का ज्ञान होता है । यदि ईसारा सिर न भो दिलता हो, पर किसी कारण से यह दव । लगे, तो हमं पसा प्रतीत होता है कि हमारा सिर हिल रहा है । चकि इम जानते हैं कि हमारा सिर वास्तव म हिल नहीं रहा, ¡ सममः लेते हैं कि इसें झक्कर आ रहे हैं । वदि हम ऊढ काल तक




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