श्री तुकाराम चरित्र | Shree Tukaram Charitra

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Shree Tukaram Charitra by लक्ष्मण रामचंद्र पांगारकर- Laxman Ramchandra Pangarkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) का विवरण बताकर विस्तारके साथ अन्तरज्ध प्रमा्णोकी देते हुए यह चर्चा चलायी है कि उन्होंने किन-किन अन्थोंका अध्ययन किया था और किस अन्यसे क्‍या पाया था । सातवें अध्यायमें गुरुकपा और गुरु- प्रम्पराका विवरण है । चित्तशुद्धिके साधनोंमिं पाठक त॒कारामजीकी लोकप्रियताका रहस्य) मनोजय, एकान्तवास, आत्मपरीक्षण और नाम- संकीर्तनका आनन्द दँ } फिर भक्तिमा्मकी श्रेष्ठता; सरुणनिगुणवयिवेक, भ्रीविद्धछोपासना और श्रीमूर्तिपूजा, भगवन्मिल्नकी रूगन--इन सबको देखते हए सगुण प्रेमको चित्तम मरते हुए विधचल्खरूपका परिचय प्राप्त करके भीविद्लमूर्तिको ध्यानसे मनोमन्दिरमें वेंठायें और रामेश्वर भट्ट और तुकाराम महाराजके बादके मर्मकों जान तुकारामकी ध्यान- निष्टाको ध्यानम ख श्रीदकारामके खाय सगुण-साक्षात्कारके उनके आनन्दका प्रतिआनन्द खम करं । इस मन्थका मभ्यखण्ड श्रीतुकाराम- चरित्रका हृदय है । इसी हदयको लेकर आगे बढ़िये । मेघवृष्टिमें तकारामजीने संसारिर्योकों वार-वार कैसे जगाया टै, दाम्मिकोका केसा मण्डाफोड़ किया टै) यह देख ले | पीछे ठुकाराम और शिवाजी-प्रकरण समग्र पढ़नेके पश्चात्‌ पाठक यह समझ लेंगे कि सन्तोंपर संसारियोंकी ओरसे জী আহীন ক্ষি जाते हैँ वे कितने अवथार्थ हैं | इसके अनन्तर सोलह शिष्योंकी वारताएँ, निछोवारायकी महिमा और इनके बादके यारकरी नेता, ठुकारामबाबा और जीजावाईका शहप्रपश्च, दोनोंकी ओर-छोरकी दृष्टियोंका मध्य देखते हुए यह देखें कि श्रीतुकाराम महाराज ज्ञान-भक्तिके परमात्मानन्दकों केसे प्राप्त हुए और कैसे सशरीर वेकुण्ठ सिधारे । धन्यवादके दो शब्द इन्दौरसंस्थानाधिपति धीमन्त सवाई तुकोजीराव दोलकरने स चरित्रग्नन्थका लेखन प्रायः समाप्त हो चुकनेपर इस सत्कार्यके निमित्त ब्रहुत बड़ी द्रव्यसहायता की, इसके लिये में उनके प्रति अपनी हार्दिक ख




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