जैन न्याय भाग २ | Jain Nyaay Vol II
लेखक :
कमलेश कुमार जैन - Kamlesh Kumar Jain,
सिद्धान्ताचार्य पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री - Siddhantacharya pandit kailashchandra shastri
सिद्धान्ताचार्य पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री - Siddhantacharya pandit kailashchandra shastri
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
312
श्रेणी :
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कमलेश कुमार जैन - Kamlesh Kumar Jain
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सिद्धान्ताचार्य पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री - Siddhantacharya pandit kailashchandra shastri
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बारात के आदव्दासी---एक परिचय 2
की परिभाषा भारतीस घदन मे कवि है । सत्त भारतीयअदिवासिमों की चर्चा
करते हुये इन परिभाषाओंं पर विश्वार करना आवश्यक हो जाता है ।
डा० सजूम्दार ते बिहार के सिहशुस-भानभु् जिलो के आदिवासियों
में कार्य किया । बैसे उनका काय ज्ीन्न अत्यन्त विस्तृत रहा है फिर भी इस
जैन भे उन्होंने अधिक काय किया है। डा० मजूमदार से आदिमजाति शब्द
की परिभाषा इस प्रकार से की हैं---
यदपि किसी भी भारतीय आदिम जाति के सभी सदस्यों मे आपस से
रक्त सबंध नहां हुआ करते फिर भी सिद्धान्ततया रक्त सबंध प्रत्येक आदिम-
जाति के सामाज़िक सबधों के सगठन एवं नियत्रण मे महत्वपूण स्थान रखते
हैं । परिणाम स्वरूप अपने समूह के अतगरत ही वैवाहिक सबंधो का सीमित
होना तथा अधिकाश आदिम जातियोका गणो तथा उपमणो मे विभावित
होना एक साभान्म विशेषता पाई जाती है। यह गण रक्त सम्बंधी होने के
कारण बहिबिवाही होते हैं ।
प्रत्येक भारतीय आदिमजाति के सभी सदस्यो की अपनी एक विशेष
भाषा होती है । एक ही क्षेत्ञ मे बसे होने पर भो भाषाओ मे भिन्नता अक्सर
उनके सपकों को शिथिल कर देती है तथा उनमे सास्कृतिक अन्तर कैसे के
वैसे बने रहते है । इस सम्बन्ध मे सेमानागा आदिमजाति का उल्लेख करते
हुये जे० एच० हटन ने एक बडी ही रोचक घटना का विवरण दिया है, जिसमे
बताया है कि सात भिन्न सेमा नाग्रा आदिम जाति के सदस्य अकस्मात अपनी
यात्रामो के दौरान एक ही स्थान पर रात काटने के लिग्रे विश्राम करने लगे ।
सभी ने अपनी भाषा मे अपनी-अपनी खाद्य सामग्री का बणन किया । परन्तु
जब उन्होने खाने के लिये अपना खाना निकाला तो सभी के पास एक ही
खाद्य सासग्री निकली । भाषाओं का अस्तर आस-पास की बसी हुई आदिम-
जातियो मे एक पदे का कायं करता रहता टै जिसके कारण परस्पर सास्कृतिकं
आदान प्रदान मे अवरोध उत्पन्न होता है। परन्तु इसके विपरीत भारतवष के
कृ क्षेत्रो मे मदिमजातियो में पनी भाषा के साथ-साथ अपने पड़ोसी
खादिमजातियो अथवा बसे हुये सभ्य हिंदू लोगो की भाषा भी प्रचलित हो
जाती है और वे दोनो भाषाओं का प्रयोग बंड़ी कुशलता के साथ करते हैं ।
” ऐसे क्षेत्ष मे परस्पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा सहंकार को प्रोत्साहन
मिला है) बिहार तथा मध्य प्रदेश की अधिकाश भादिमजातियों में ऐसी ही
परिस्थितियां देखने को मिलती हैं ।
মণি भिन्न भिन्न आदिमजातियो में परस्स्पर संघर्ष कुछ क्षेत्रों में पाये
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