हिंदी जैन साहित्य परिशीलन भाग 2 | Hindi Jain Sahitye Pariseelan(vol-ii)
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
260
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ नेमिचंद्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आवां अध्याय
वर्तपान काव्यधांरा और उसकी विभिन्न प्रवृत्तियाँ
हिन्दी जैन साहित्यकी पीयूपधारा कल-कल निनाद करती हुईं अपनी
शीतलतासे जन-मनके संतापको आज भी दूर कर रही है। इस बीसवों
शताव्दीमें भी जैन साहित्यनिर्माता पुराने कथानकोंकों लेकर ही जआाधु-
निक शैली ओर आधुनिक भापामें ही सजन कर रहे हैं। भक्ति, त्याग,
बीरनीति, “£गार आदि विपयोपर अनेक लेखकॉकी लेखनी अविराम
रूपसे चल रही है । देश, काल ओर वातावरणका प्रभाव इस साटित्यपर
.अी पडा है । यतः पुरातन उपादानं थोड़ा परिवर्तन कर नवीन काव्य:
भवनोंका निर्माण किया जा रहा है|
महाकाव्योंमें वर्द़मान इस युगका श्रेप्ठकाव्य है। इसके रचयिता
यशस्वी कवि अनूप शर्मा एम, ए. हैं। इस महाकाव्यकी शैली संस्कृत
काव्योंके अनुरूप है। संस्कृतनिष्ठ हिन्दीमें वंशस्थ,
द्रुतविलम्बित और मालिनी इत्तोंमे यह रचा गया है।
इसमे नख-शिखवर्णन, प्रभात, संध्या, प्रदोष, रजनी, तष्ठ, पूर्य,
चन्द्र आदिका वर्णन प्राचीन काव्योंके अनुसार है ।
दसं महाकाय्यक्रा कथानक भगवान् महावीरका परम-पावन जीवन
ই | कचिने स्वेच्छानुसार प्राचीन कथावस्तुमं देरफेरभी क्रिया है। दो-
चार स्थलोंकी कथावस्त॒में जैनघर्मकी अनभिन्नताके
कारण वैदिक-धर्मकोल्य वरेटाया द| भगवानकी
चाल्क्रीडाके समय परीक्षार्थं आये हुए देवरूपी सपंका दमन ভাল ভান
कालिय-दमन कै समान कराया है। सर्पकी भय॑ंकरता तथा उसके कारण
प्रकृति-विल्लेब्घता भी ल्यभूग देसी ही है| कवि कहता हैं ।
वर्धमान
कथावस्तु
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