हुमायूँनामा | Humayunama

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हुमायूँनामा  - Humayunama

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

गुलबदन बेगम - Gulbadan Begum

No Information available about गुलबदन बेगम - Gulbadan Begum

Add Infomation AboutGulbadan Begum

व्रजरत्नदास - Vrajratandas

No Information available about व्रजरत्नदास - Vrajratandas

Add Infomation AboutVrajratandas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ५) कुछ ही दिनो बाद हुमायूँ श्रपनी जागीर संभल मेँ बीमार हो गया श्रौर उसके जीवन की आशा बहुत कम रह गई । उस समय हुमायूँ की परिक्रमा करके बाबर के प्राण निछावर करने, अपने भ्रधिक श्रस्स्य होने पर अपनी दो पुत्रियों गुलरंग बेगम और गुलचेहरः बेगम का विवाह निश्चित करने, अमीरों और सरदारों के सामने हुमायूँ को अपना उत्तरा- धिकारी नियुक्त करने, और २६ दिसम्बर सन्‌ १५२३० ई० को बाबर कौ मृत्यु तथा बेगमों के शोक श्रादि का गुलबदन देगम ने बढ़ा हृदयद्रावक वशणन किया है। हुमायूँ को जो साम्राज्य भारत में मिला था लसकी जड़ जमी हुई नहों थी । शत्त्र ही के बल से उसपर अ्रधिकार हुआ था और उसी के द्वारा वह स्थापित रह सकता था। हुमायूँ के चरित्र-चित्रण और उसके गुणों ओर दोषों का उसके भाइयों के चरित्र से मिल्लान करके उसकी बिशेष योग्यता दिखलाना अधिक आवश्यक है, पर उसके लिए यहाँ स्थान कम है | जो कुछ इत्तात यहाँ दिया जाता है उससे कुछ श्राभास अवश्य मिल जायगा । हुमायूँ जब गद्दी पर बैठा तब अपने पिता के इच्छनुकूल इसने अपने भाइयों को बडो बडी जागीरे दीं। कामराँ को काबुल जागीर में मिला था पर उसने दूसरे ही वर्ष पंजाब पर अधिकार कर लिया। हुमायूँ अ्रातृ-प्रेम के कारण इस पर चुप रह गए। सन्‌ १५३३ ई० में मिर्जाओं का विद्रोह दमन हुआ और सन्‌ १५३५ ई० में गुजरात विजय हुआ, पर दो वर्ष के अनंतर वह हाथ से निकल गया। हुमायूँ की दीघ- सूत्रता के कारण बंगाल में शेरशाह सूरी का बल बराबर बढ़ता चला जा रहा था जिससे सन्‌ १५३६ ई० में उसपर आक्रमण के आरभ में हुमायू' को अच्छी सफल्लता प्रास हुई थी, पर इसका श्रंत हुमादूँ के साम्राज्य का श्रंत था | जिस समय हुमायूँ गौड़ में सुख से दिन व्यतीत कर रहा था, उस समय हिंदाल ने कुछ सरदारों की राय से विद्रोह कर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now