अलका | Alaka

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Alaka by श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की जय” बोलने के लिए हजारों स्वयंसेवक भक्‍तो को एकत्र किया। विवाद के दिन प्रार्य-समाजी पण्डितों के भाषण के समय पुन'-पुनः सना- तन-घर्म की जय के. मारे उठने लगे। भाषण नक्‍कारखाने में तूती की आवाज़ हो गये । सनातनी पण्डितो के समय “घन्य है, धन्य है” होने लगा। इसके लिए उन्होने अपनी तरफ से एक डिक्टेटर नियुक्त कर रक्छा था । परचात्‌ “आयुँ-समाज की क्षय हो” के प्रभिवादन से सभा समाप्त करायी । सव्यनारायणजी कौ कथा का प्रसाद वटा । सनातनी पण्डितो को मोटी-मोटी बिदादयां मिली 1 जनता खुले दिल गिरधारी- लाल के धर्म की तारीफ करने लगी । इस तरह प्राचीन कलंक नवीन धामिक उज्ज्वलता से घुलकर जनता के हृदय के तत्त्व से ही मिल गया। भिरधारीलाल ने श्रपनी महत्ता से अब समाज का गोवद्धेन धारण कर लिया । उनकी इस उच्चता का उन्हें वांछित वर भी मिला । जमीदारी के लोगों के प्रत्येक प्रकार के ताप का भाष द्रवित हो-हो वही बरसने लगा, भौर गिरधारीलाल गिरवर को ही तरह ऐश्वयें के जल से भरते रहे । बढा हुश्रा जल सनातन-प्रथा के नदी-पथ से बराबर सरकार के समुद्र की झोर बहता रहा। जमीदारी के लोग प्यास बुझाने के लिए बराबर पत्यर फोड-फोडकर कुएं बनाते रहे । पितामह ने सम्पत्ति प्राप्त की, पिता ने प्रतिष्ठा | भ्रव मुरलीधर के लिए दुरूह दुर्ग कोई विजय के लिए रहे गया, तो प्रतिष्ठा के अनुकूल खिताब । इनसे हैसियत के बहुत छोटे-छोटे ताह्लुकंदार भ्रपने खिताब की शान में इनकी तरफ़ देखते भी नही । बातें करते है, जैसे दो मं जिले- बाला सडकवाले से बोलता हो। यह सव उनके लिए, जिनके पास अधिक सम्पत्ति हो, सहन कर जाने की बात नही । अफसरों को पु कर पदुदी प्राप्त करने का भ्रचूक मन्त्र मुरलीधर को उनके सेक्रेटरी 2 ने दिया । मोहनलाल पहले कालवन स्कूल के शिक्षक थे । मुरलीधर जब पढ़ते थे, तभी शिक्षक की हैसियत से मन्त्र भोर मन्त्रणा देते हुए यह शिष्य के बहुत नजदीक प्रा गये थे इसका मतलव लक्ष्मी हो से सामीष्य भोर सायुज्य प्राप्त करना था, मुरलीधर को यहु नास के पहले हो दिन से काठ का उल्लू सममते झा अलका | १७




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