भागो नहीं भाग्य को बदलो | Bhago Nahi Bhagy Ko Badalo

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Bhago Nahi Bhagya Ko Badlo by वेद प्रकाश - Ved Prakash

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वेद प्रकाश - Ved Prakash

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शंकर नायक - Shankar Nayak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न ही ' से इतना अधिक प्रभावित हुए कि उन्हें भेल विश्वविद्यालय में 60 डॉलर साप्ताहिक वेतन पर रख लिया गया। यह बात सन्‌ 1871 की है। कहां पांच डॉलर प्रति सप्ताह लेने. वाला और कहां साठ डॉलर प्रति सप्ताह, परन्तु आप अनुमान लगा सकते हैं कि प्रो. सार्जेण्ट ने किस समय से और किस लगन से अवसर को खोजा और उसके लिए तैयारी की । यदि वे अपने विद्यार्थी जीवन से ही इसकी तैयारी न करते तो उन्हें कभी भी यह अवसर प्रात न होता। आज के युवक तो कभी भी इतने+कम वेतन पर तैयार न होंगे। प्रो सार्जेण्ट का कहना है कि वेतन से कुछ अन्तर नहीं पड़ता। काम को पैसों से नहीं तोलना चाहिए । देखना यह चाहिए कि अवसर क्या है और कैसा है। आज का युवक पहले ही सोचने लगता है कि मेरा मूल्य इससे अधिक है और वह कम वेतन पर काम करने को तैयार नहीं होता। प्रो. सार्जण्ट का कहना है कि मेरे पांच डॉलर के वेतन ने ही साठ डॉलर का मार्ग खोला । जीवन में आने वाले अवसरों की. ताक में. रहने वाला व्यक्ति अवश्य ही एक-न-एक . दिन उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है। विशेषत: युवकों को तो चाहिए कि वे मौका खोजें और उसे प्राप्त करने की जी-जान से कोशिश करें । मौके की तलाश में रहने वाले एक युवक की कथा पढ़कर आपको ज्ञात होगा कि ऐसे लोग कैसे काम करते हैं और किस प्रकार उन्नति के सोपान पर चढ़ते हैं। . जॉन ग्राण्ट नामक एक युवक लोहे की रेतियों की दुकान पर काम करता था। जब . वह दुकान पर काम कर रहा था तो उसके मालिकों ने कहा कि तुम दुकान का काम अच्छी तरह समझ लो। जब तुम कुछ जान जाओगे तो तुम्हें किसी उचित काम पर लगा दिया जाएगा, अभी तो तुम जो काम कर रहे हो वह बहुत साधारण है, योग्य होने पर तुम्हारा उचित मूल्य दिया जाएगा। उस कम्पनी का व्यापार विदेशों में भी था। फ्रांस और जर्मनी से भी माल आता था। उनके बिल आदि भी वहीं की भाषाओं में होते थे । कम्पनी का मैनेजिंग डायरेक्टर फ्रेंच और जर्मन भाषाएं जानता था । अतः: वही इन बिलों की जांच-पड़ताल करता था। ग्राण्ट ने देखा . तो वह इस काम की ओर आकृष्ट हुआ। उसने इस रहस्य का पता लगा लिया कि इस काम के लिए फ्रेंच और जर्मन भाषाओं की जानकारी आवश्यक है । उसने इन भाषाओं का अभ्यास किया और कुछ समय बाद वह इस काम में पूरी तरह सिद्धहस्त हो गया। एक दिन मैनेजिंग डायरेक्टर किसी अन्य कार्य में व्यस्त था और उधर विदेशी माल के बिलों का ढेर लगा था। मालिक परेशान था कि क्या किया जाय, क्योंकि दोनों ही काम अत्यन्त महत्वपूर्ण थे। ग्राण्ट ने मालिक की परेशानी देखी और वह उनसे जाकर बोला-महोदय! यदि आप कहें तो इन बिलों की जांच-पड़ताल मैं कर दूं? मालिक स्तब्ध! . उसने बिलों का ढेर ग्राण्ट की ओर सरका दिया। ग्राण्ट ने बिलों की जांच-पड़ताल इतने .. अच्छे ढंग से की कि आगे उसे यही काम दिया जाने लगा। ... एक महीने तक ग्राण्ट यह काम करता रहा। एंक दिन उसे डायरेक्टरों की मीटिंग ..... 16 0 भागों नहीं भाग्य को बदलो ........... भागों नहीं भाग्य को बदलो-1




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