तीर्थ दर्शन पाण्डअर्पण | Tirth Darshan Panda Arpan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ १५ )
तीर्थो में मनुष्ध चहुचा ঘালাগ আহি धातुओं की प्रतिमाओं को
इंड्वर की मूर्ति समझ कर पूजा करते हैं पर वह भोले भाछे यह नहीं
जानते | क्रि-इशर निराकार है-देखिये! यज्ुर्वेद अ० ३२ । ३ में
छिखा है कि परमेदर की, जिसका अश्वण्ड यड ओर प्रताप है, मूरति
नहीं हती यथा-न तस्य मरत्तिया जास्ति यस्य नाम महयश्चः।।
पुराणौ मे मी ई्वर के! निसकार कहा मया है } यथा--
हस्त पादादि रहितं निशेणं भरते: परम् = वृहवेवकतपुराण ॥
नि्िका रो निराकारे निरवचखोहमव्ययः = तत्ववेध ॥
निशतःसचचिदानन्दः=गरुदपुराख । निराकार निरन्तरम्
अवघ्रूतगीता ! निविकारं निरज्जनम् =जा० रामायण ॥
अनन्य भक्त जी ने इवर को निराकार माना है | यथा--
सवै परै अरू सप त्रै एनि स्वं विषै परिपृर रहो है ।
बार न पारअपारअखण्डसो पिण्डब्रह्माण्डसमावलहों है 0
: पूरन सर्व अनन्य भेने पर आवहि दृष्टि न झष्टि गहों है ।
खुछम रूप अरूप सदाइमि ब्रह्म अगरचर रूप कहो है ॥ १ ॥
आदिअवादिअनन्तअनूपअछेदअभेद्अलेखअजाण्डित ।
अच्युतनाथअचिन्त्यअभयपदअदभुतभूवअभूतछमण्डित ॥
आनन्दमूछअमल्यअगाधघअनाहदआ क्तिकोब्मचाण्डित ।
जासु अनन्यभमने सुखरूप स्रों रूपानिरूप निरूपाते पण्डित २. ॥
निशुन सरशन कौन गुने , पुनुरूप नहीं वह को रुँखि आयो।
एकः अनेकं विशेष नहीं , अरुदृर नजीकनहींडिक ठायो ॥
अनिवैचनिय अनन्यभनै , कहते न बने हँ विना दी वनायों ।
पूरन जह्य सचे पर पूरन , पणे भये त्तिन एरन पायो ॥३॥
महयत्मा द्ादुदुयार ने भी सवर को निराकार জনা ই | यथा--
अंधिनासी सो सत्य है, ठपजइ विनसईं नाहि ।
জা कहिये कार मुख, सो साहिब किस माहिं ॥
साई मेरा सत्य है, निर्जन निराकार ।
दाद् विनस्ड देवता, झूठा सब जाकर ॥
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