सौन्दर्य दर्शन | Saundarya Darshan

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Saundarya Darshan  by शंतिचंद्र मेहता - Shantichandra Mehta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११) प्रमु हमारा पडसुकमाल दहत ही कोमल धा, राज-सुर्खों में पतला था, फिर भो हठ करके उसने दीक्षा ले ली | प्लवाप कृपा करके वताध्ये कि उसके साधु धीवन की पहली रात कैसे बीती है ” दृसी पिन्ता हद तो प्रमातकाल द्ोोते म होते हम दौढे प्राये हैं। नवदौक्षित मुनि के हमें दर्शन भी कराएये, भगवन्‌--वसुदैव, हेदकौ पौर कृष्ण हीनों प्रतीक्षातुर हाथ बाघे खडे ये । भयदान ने भावोद्वेक में कष्टा--'कहा हैं मुनि बजसुकमाल, दिहके में तुम्हे दर्शश कराऊ ? वह तुमसे क्या छूष्टा, मुझसे भी छूट गया घोर पहली ही रात्रि में देह भोर ससार से भी छूट बया ' है ।! यह सुनकर सभी मौन हो गये थे । ]




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