हर्षवर्द्धन | Harshvardhan

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Harshvardhan by गौरीशंकर चटर्जी - Gaurishankar Chatterji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत की राजनीतिक अवस्था [ १५ ग्रतिरिक्त संभव है कि गुप्तवंश के प्रतिष्ठाता चंद्रग॒प्त प्रथम ने लिच्छवियों की सहायता से जिस (मगधकुलः के राजा से मगध देश को जीत लिया था वह मौखरि वंश का ही रहा हो । यह श्रनुमान दाल में श्राविष्करृत कौमुदीमहोत्सवः नामकः नारक पर श्रवलं नित है 1१ म्रोखरि नाम के दो विभिन्न राजवंश थे | उन की सुख्य शाखा उस प्रदेश पर शासन करती थी जिसे आजकल संयुक्तप्रांत कहते हैं। बाण के एक कथन से प्रकट होता है कि उन की राजधानी शायद कन्नोज में थी* | मुख्य शाखा के अतिरिक्त एक करद वंश था जो गया प्रदेश पर राज करता था | गया के उत्तर-पूर्व १५ मील की दूरी पर स्थित बरावर ओर नागा्जनी पहाड़ियों के गुफा-मंदिर के लेखों से हमें इस वंश के तीन नाम ज्ञात हैं-- अनंतवर्मा, उस के पिता शादलवमां तथा पितामह यज्ञवर्मा* | इन तीनों राजाओं का शासन-काल पाँचवीं शताब्दी निर्धारित किया गया ই* | लिपि-प्रमाण के आधार पर वे छठी शताब्दी के पूवाद' के पीछे नहीं हो सकते” । इतना स्पष्ट है कि वे गुप्त सम्राठों के বামন थे। मौखरियों की प्रधान शाखा जो आरंभ में गुप्त राजाओं की अधीनता स्वीकार करती थी, अपनी उन्नति कर के उत्तरी भारत की प्रधान शक्ति बन गई। इस वंश के प्रथम तीन मौखरि शजाओं के नाम हरिवर्मा, आदित्यवर्मा तथा ईश्वरवर्मा थे | इन तीनों में से ईश्वरवर्मा ( ६२४---५५० ई० ) वस्त॒तः एक वीर पुरुष था। सर्वप्रथम उसी ने अपने वंश की प्रतिष्ठा बढ़ाई | ज्ञात होता है कि इन प्रारंभिक मौखरि राजाओं ने गुप्त-राजाओं के साथ वेवाहिक संबंध जोड़ा था। प्राचीन भारत में दो राजवंशों के बीच, विवाह का संबंध प्रायः राजनीतिक दृष्टिकोण से स्थापित किया जाता था। यूरोप के इतिहास में भी इस प्रकार के विवाहो का उल्लेख मिलता है। गुप्तवंश के राजा कूग्नीति-विद्या में बड़े निपुण होते थे। अवसर था कर वे ऐसा संबंध जोड़ने में कभी चूकते नहीं थे। चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छुवियों के साथ जो विवाह-संबंध स्थापित किया था उस का क्‍या फल हुआ यह हमें मली भाँति ज्ञात है। चंद्रगुप्त द्ितीय ने भी अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह, दक्तिण के मध्य भाग के वाकाटक राजा रुद्रसेन द्वितीय के साथ किया था। वुंदेलखंड' ` १देखिए, एडवाडं पए. पिरेज्ञ, 'दि मौखरिज्ञ'--( १६३४ )--प्रथम परिच्छेद, पृष्ठ २९-४९ शभत्तदारिकापि राज्यश्रीः कान्यकुब्जे कारायां निश्चिप्ता--हरपंचरित, एष्ट २९१ 3फ़्लीट--कार्पस इंसक्रिप्टियोनुम्‌ इंडिकारुम' জিন ই, लेख न० ४८-४१, प्ृष् २२१-२२८ ४भगवानलाल इंढनी यौर व्यूलर--'इंडियन एंटिक्वेरी', जिल्‍द ६१, पृष्ठ ४८८ की टिप्पणी । शकीलहान --एपिग्राफिया इंडिका', जिरद्‌ ६, पृष्ठ ३ ध्जौनपुर का लेख जो बहुत অহন ই, ম্যান ईशानवर्मा कीं विजयों का उल्लेख करता है, जैसे--अंभ्रपति को जो चिल्ल भयभीत हो गए थे! अपने अधीन करना--देखिए, कार्पस इंसक्रिप्टिगोनुस्‌ इंडिकारुस! जिल्दु ३, पृष्ठ ३३० -




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