राम - भक्ति शाखा | Ram - Bhakti Shakha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय प्रतेश है
हैँ जिनका साहित्य में स्थान है; जैसे कुतबन, मेकन ओऔर उसमान ।
दक्तिण के जिन महात्माओं ने उत्तर भारत मे वेष्णव धम का प्रचार
किया उनमें से बल्लमाचायें जो का बड़ा ऊँचा स्थान है। वे जदाँ परम
भक्त थे वहीं धुरंघर विद्वान | इन्होंने श्रीकृष्ण को द्वी परब्रह्म॑ं मानकर एक
नये दृष्टिकोण से अपने धर्म का अ्रतिपादन किया । इन्दोंवे सभुण ब्रह्म को
ही ब्रह्म का ग्रसत्ी रूप ओर प्रेम को ही उसका साधन बताया । कृष्ण भक्क*
कवियों ने इन्हीं सावनाओं से प्ररित दोकर पद रचना को | इत भावनाओं
से युक्त श्री कृष्ण किसी मद्दाकाव्य के नायक नहीं दो खक॒ते थ । श्रीकृष्ण
की बाललीला ओर उनका राधा के प्रति प्रेम मद्दाकाव्य की सामग्री
उपस्थित नहीं करता। यही कारण है कि कृष्ण को लेकर दिंदीसादित्य
म स्फुट पदयो की रचना हृ । रामचरितमानस जैसे उच्चकोटि के प्रबंध
काव्य लिखने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी ने कृष्ण पर कुछ पय लिखे
हैं। उन्होंने भी उन पर कोई प्रबंध काव्य नह्दीं लिख।। चस्तुत: देखा जाय
तो रूष्णु का लोकरच्तक और घस्-संध्यापक रूप ही लोगों के सामने न
आया । परग्तु जो कुछ भी लिखा गया वह भेम और भक्कि से परिपूर्ण है ।
सूरदास, मीराबाई, ननन्द्दासल, रसखान आदि कवियों की रचनाओं में
जो आकुलतापूर प्रेम के दशन होते हैं, उन्हीं के कारण हिंदी का साहित्य
इतन! सरस ओर गौरबपूर् है। राजनीतिक परिष्यिति के कारण
उत्पीड़ित जनता को जो शांति मित्रनी चाहिये थी वद्द निभुण कवि न दें
सके । उनकी रचना मै चह सस्सतान थी, उत्तम तन्मयता का লাল
था | दोषद्शन और सुधार की भावना के साथ भक्ति का इतना मेल हो
भी तो नहीं सकता । भ्रीकृष्ण के प्रेमपूर्ण चणन से जहाँ एक ओर जनता
का व्यधित हृदय शांत द्वो रह्य था चहीं दूसरी ओर हिंदी कबियों के
गौरव गोखामी तुलसीदास जी एक प्रवेघ काव्य लिखकर सर्यादपुरुषोचम
रामचन्द्र का चह खरूप जनता के सामने रख रहे थे, जिसने जनता के
हृदय में साहस बल ओर उत्साह का संचार किया । लोगों के हृदय से
निराशा दुर हुईं, कतेव्य का शात हुआ और जीदन की वास्तविकता की
ओर उनका ध्याव अकृष्ट हुआ ।
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(५ স্প্রে
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