कवितावली | Kavitavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बालकाण्डः
श्रीजानकीजीकों जगत॒की माता और कल्याणखरूप श्रीरामचन्द्रको
जगतके पिता जानकर मनमें ऐसे विचारकर देखो जिससे मुंहमें
कालिमा न छगे । अनेकों विवाह देखे हैं, वेद-पुराण भी सुने ओर
श्रेष्ठ साधु पुरुषोंसे तथा जो अन्य खी-पुरुष परीक्षा कर सकते हैं,
उनसे भी पूछा है; परन्तु ऐसे समान समधी और समाजकी जोडी
कहीं नहीं है, और न श्रीरामचन्द्रजीके समान दुलहा तथा
श्रीजानकीजी-जेसी दुलहिन ही हैं।
बानी बिधि गौरी हर सेसहूँ गनेस कही,
सही भरी लोमस असुंडि बहुबारिषो ।
चारिदस भुअन निहारि नरनारि स
नारदसो परदा न नारदु सो पारिखो ॥
तिन्ह कदी जगमे जगमगति जोरी एक
दूजो को कहैया ओ सुनेया चष चारिखो ।
रमा रमारमन सुजान दनुमान कदी
सीथ-सी न तीय न पुरुष राम-सारिखो ॥१६।।
सरखती, ब्रह्मा, पार्वती, शिव, शेष ओर गणेराने कहा है
ओर चिरञ्ीवी खोमश तथा काकमुशुण्डिजीने साक्षी दी है; जिन
नारदजीसे कहीं पर्दा नहीं है ओर जिनके समान दूसरा कोई खी-
पुरुषोंके लक्षणोंका जानकार नहीं है, उन्होंने भी. चौदहों भुंवनोंके
समस्त खी-पुरुषोको देखकर यही कहा है. कि संसारमें एक श्रीराम-
जानकीजीकी [ ही। ] जोड़ी जगमगा रही है। उनसे बढ़कर और
कौन. चार आँखोंबाला .बतछाने और छुननेबाला है । खयं चमी
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