संस्कृत रागकाव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन | Sanskrit Rag Kavyon Ka Alochanatmak Adhyayan

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
339
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का व्यपेद -- शण्डका व्य,गीलिकाव्य बाप रायकाज्य के हूप में काव्य का প্রকার
जा বাজ হা রাজ রাখার রায় রা হার হা. আর রা হার রা হার: রাজ রাহ রাজ রা রাত বার রা রাড রা বার বা হার রাড বার আট বাত হা রাড হা রা রা রা টা ই রা मि सि केः ज হা রাজ পার বার মারার হার বারা হার হা के
শ্হিজ্ হল ভরধীল दोनों हो माव का সান হজে । সাম কা
प्रकाशन कविता शब्दों के माध्यम से काती है, बबाकि संगीत माद जध्या स्वरों का
জাল উল্যা है | জালা ढे पारम चिन्न हैं, किल्तु कश्य समान है । दोनों का छत्य
है, आनन्द को कनुपून्ति | +
प्रगीत पत्य शक रदौ वधान हैं $ ^ अक হা আল্যা
रस के शविज्षिष्ट भावों का प्रशन श्लथा बाता है। साराश में कह हकते है ~
धरमी तकहा' को व्यक़ा को परिपोजिका है । হয प्रकार संगीत साहत्य के 'िये
उतना ही उपयोगी तथा खा यन्ददायौ है, जितनी वरात के किये कुछुमावली आर
६ वाछोकमाका । सत्य शिवि सुन्दामः कौ जितनी कोमल और मथा
न
ब्मिव्यक्ति धंगीत से होती है, उतनी अन्यत्र नहीं, हस दाॉच्टि से संस्कत का राग-
काय्य त्यन्त यहत्वपुर्णी है। प्रारम्म से ही समीत साहित्य का सहयोगी रश
हे श्त: यहो कारण हे कि रानकाज्यों को यह नुण-समदि दीअंकालीन 1विकास-
परम्परा का परिणाम है। राघवविकय ओर माग्ीचव रागकाज्य वह ह्रिहाप
है, जिसमें शोतह रस का कथाह प्रवाह, पदतरहनमों की सुन्दर, संगीत-ध्यात मे
धमृद्ध हे आर अपदेव का गोसमोविस्द वह तोर्थराज हे बाः कष्ट-मार तथा स्कति
की गंगा-यमुता का छोकविशुत पदसेही को अन्तःसाहि सहु-गम
होता हे, यह एक रेसा सहु-गम है बहा 'यद पद होतु फ्यागु” सारे प्रतीत होता
क,
इ ।
संस्कृत के रागका व्यों यै कीः परेम कोः मन्दाकिनी बह रही हे, লা
कही क्रठाजरस की फल्युधारा, कही नोवन के उत्छासयय सनत हैं, तो कहीं
रवाह के मपो च्छवास् । इस प्रकार वैमव, विहा ओद कल्पना के तमेकानेक रंगों
से विवितरित प्रेममावता के चित्रों हें संस्कृत रागकाज्य मरा पढ़ा हे ।
ন্ট
क्-तुत शोघ-प्रबन्ध में संस्कृत काव्य-धारा को रागकाव्य पौ इत
नवीन तरहुन्य का यशाश्वम्पव ज्यना'
इन करने का সলাত ফিতা गया हे ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...