संस्कृत रागकाव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन | Sanskrit Rag Kavyon Ka Alochanatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का व्यपेद -- शण्डका व्य,गीलिकाव्य बाप रायकाज्य के हूप में काव्य का প্রকার जा বাজ হা রাজ রাখার রায় রা হার হা. আর রা হার রা হার: রাজ রাহ রাজ রা রাত বার রা রাড রা বার বা হার রাড বার আট বাত হা রাড হা রা রা রা টা ই রা मि सि केः ज হা রাজ পার বার মারার হার বারা হার হা के শ্হিজ্ হল ভরধীল दोनों हो माव का সান হজে । সাম কা प्रकाशन कविता शब्दों के माध्यम से काती है, बबाकि संगीत माद जध्या स्वरों का জাল উল্যা है | জালা ढे पारम चिन्न हैं, किल्तु कश्य समान है । दोनों का छत्य है, आनन्द को कनुपून्ति | + प्रगीत पत्य शक रदौ वधान हैं $ ^ अक হা আল্যা रस के शविज्षिष्ट भावों का प्रशन श्लथा बाता है। साराश में कह हकते है ~ धरमी तकहा' को व्यक़ा को परिपोजिका है । হয प्रकार संगीत साहत्य के 'िये उतना ही उपयोगी तथा खा यन्ददायौ है, जितनी वरात के किये कुछुमावली आर ६ वाछोकमाका । सत्य शिवि सुन्दामः कौ जितनी कोमल और मथा न ब्मिव्यक्ति धंगीत से होती है, उतनी अन्यत्र नहीं, हस दाॉच्टि से संस्कत का राग- काय्य त्यन्त यहत्वपुर्णी है। प्रारम्म से ही समीत साहित्य का सहयोगी रश हे श्त: यहो कारण हे कि रानकाज्यों को यह नुण-समदि दीअंकालीन 1विकास- परम्परा का परिणाम है। राघवविकय ओर माग्ीचव रागकाज्य वह ह्रिहाप है, जिसमें शोतह रस का कथाह प्रवाह, पदतरहनमों की सुन्दर, संगीत-ध्यात मे धमृद्ध हे आर अपदेव का गोसमोविस्द वह तोर्थराज हे बाः कष्ट-मार तथा स्कति की गंगा-यमुता का छोकविशुत पदसेही को अन्तःसाहि सहु-गम होता हे, यह एक रेसा सहु-गम है बहा 'यद पद होतु फ्यागु” सारे प्रतीत होता क, इ । संस्कृत के रागका व्यों यै कीः परेम कोः मन्दाकिनी बह रही हे, লা कही क्रठाजरस की फल्युधारा, कही नोवन के उत्छासयय सनत हैं, तो कहीं रवाह के मपो च्छवास् । इस प्रकार वैमव, विहा ओद कल्पना के तमेकानेक रंगों से विवितरित प्रेममावता के चित्रों हें संस्कृत रागकाज्य मरा पढ़ा हे । ন্ট क्-तुत शोघ-प्रबन्ध में संस्कृत काव्य-धारा को रागकाव्य पौ इत नवीन तरहुन्य का यशाश्वम्पव ज्यना' इन करने का সলাত ফিতা गया हे ।




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