संस्कृत रागकाव्यो का आलोचनात्मक अध्ययन | Sanskrit Ragkavyo Ka Alochanatmak Adhayyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sanskrit Ragkavyo Ka Alochanatmak Adhayyan by ज्योति सहगल - Jyoti Sahgal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ज्योति सहगल - Jyoti Sahgal

Add Infomation AboutJyoti Sahgal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
জানাব में से कक तावार्य ही घविवेबनीय हैं, 'जिन्‍्होंने काव्य के रूप एव उसके कमौकरणण प्‌ कण्विक -व्विस्तार्‌ से विचार किया है। हसये सर्वैप्रथण मामह,दण्टी तथा आचार्य विश्वनाथ उत्छे्नीय हे । अघुना তলক শ্বিবলস ক জাঘা ন্‌ काव्य 1विमावन द्रष्टव्य है| आचार्य दण्डी ने उपने काव्यादश में काव्यविभाबन हस प्रकार „ श प्रस्तुत ककया हे ~ নখ पथ च पिन च ततु श्रियेव व्यवर्थतमु । पथं वतुष्यदी तस्व वत बा्तिरिति दिवा 11 इन्दो विचित्था सकठस्तत्प्रपत्चों 1तिदर्शितः । खा त्वया नोती गभीर काव्यलागरम ।! युक कृषट्कं कोषः: सहुघात हात तादुश: | समैबन्धाश्हयत्वादनुक : पथविस्तः : | दण्ढी के अनुसार काव्य तीन प्रकार का होता हैं -- सथ, पय गौर मिभ | मय उसे कहते हें जिसे हम स्वमावत: बोठते हैं । जायायं दण्डौ ने पथ चतुष्यदी * कहा है । यह यथ प्राय: बार चरणों का होता है । पथ के दो प्रकार होते हं - वृत्त स्व बाति । कार संस्थात वरुण को वत्त तथा मात्रा सद स्थात चरण को जाति कहते हैं। मिश्र शव्द से नवपचमव ममित्रण” विवच्ित है ।नाटक- বস্তু আাশ্যি इसके प्रमेद में आते हं । क्नाति आष्ठि छन्‍दों का 'हत्दोंविचिति' ना मक कन्यां ग्रस्थ में वविस्ताएथुर्वक विवेबन किया यया हे । मुक्तक, कुक, करीन , सघधात आदि पथ पविस्तर का हस ग्रन्थ में विल्तुत ।विवेबन नहीं किया गया है, क्यों कि वे समी सगर्वा त्यक महाकाव्य के जहु.ममूत हे । इसमें मुक्त क तथा कुक सादाद बहु-्ग हे जीर कोण तथा थात तचदनने न्ग शो बाया काते ई । अ स कलकः वनः एन मि य तः द श निकः १~ काव्याद ~ प्रथम पपि ष्डेद, शोक ९९ १२, २३, पृष्ठ खस्था १४, १५ ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now