मनोबल | Manobal

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Manobal by केदारनाथ शर्मा - Kedarnath Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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মশীনিয়ই करना चाहिये। आप अपने मन को पुनः पीछे खोंच छाइये और उसे उसी “सहानुभूति” शब्द पर ही स्थिर कीजिये और प्रयत्न कीजिये कि वह वहाँ से डिगन सके। दूसरे दिन यदि आपकी इच्छा दो तो आप कोई दूसरा शब्द चुन छे ; हमारे जीवन व आचरण से उसका क्या सम्बन्ध है, इस पर पूर्णतया विचार करें | शब्दों से चलकर आप धीरे-धीरे सिद्धान्तों तक पहुंचेंगे और आपको शीघ्र ही माद्ूम होगा किं आपके प्रभात-चिन्तन का तत्व आपके नित्याचरण में आ गया है| सच पूछिये तो आपको मात्यम भी न होगा और आपके प्रभात-चिन्तन का तत्व आपके नित्य जीवन का एफ অল্প बन जावेगा। ऐसा होना अनिवार्य है, क्योंकि हम वही हो जाते हैं जिसपर हम गम्भीरता से विचार है मनि एक दफा एक लड़की को देखा था जिसके लिये लिखना बड़ा कठिन था। लिखावट अच्छी न होने के कारण पाठशाला में उसे नित्य ही डॉट-फटकार सहनी पड़ती थी ओर शिक्षकों.-ने निराश होकर यही অমল लिया था कि उसकी लिखावट हमेशा ऊटपटाँग और भद्दी रहेगी। लड़की रुवयं भी पृर्णतया हतोत्साह টি পাশ




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