मूल सूत्र | Mool Sutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ उन्नीस - प्रमाण-विभाग १३, प्रमाण-लक्षण १२ सतिज्ञान के एकार्यक दाब्द मतिज्ञान का स्वरूप मतिज्ञान कें भेद জয় आदि उक्त चारो मेदो के लक्षण १५ अबग्रह भादि के मेद सामान्य रूप से अवग्रह आदि का विषय इद्रमों को शानीत्पत्ति-पद्धति-सम्बन्धी भिन्नता कै कारण अवग्रह के अवान्तर भेद কান্ত अत्तश्ाव का स्वरूप और उसके भेद अचधिज्ञान कै प्रकार मौर उनके स्वामी मन.पर्थाय के भेद सौर उनका अन्तर अवधि और सनःपर्पाय में अन्तर पाँचो ज्ञानो का ग्राह्म विषय एक आत्मा मे एक साथ पाये जातेवालें ज्ञान विपर्यगज्ञान का निर्धारण और विपर्ययता के हेतु नथ के খন मयो के निरूपण का भाव ३६, नब्बाद की देशना और उसनभी विशेषता ३६, सामान्य लक्षण ३८, का स्वेहप ३९, नैगमनय ४०, सग्रहनय ४०, व्यवहार- नय ४१, ऋजुसूत्रनय ४२, गव्दनय ४२, समनिरूढनय ४३, एवमूतनेग्र ४४, शेष वक्तव्य ४४ सजीव पांच माव, उनके मेद ओर उदाहरण भावों का- स्वरूप ४८, औपशमिक भाव के मेद ४९ क्षायिक भाव के मेद ४९, क्षायोपशमिक्र भाव के भेद ४२ ओदयिक भाव के भेद ४९, पारिणामिक भाव के भेद ५० जीव का लक्षण उपयोग की विविधता जीवराशि के ब्रिसग संसारी जोबों के भेद-प्रभेद १३ १४ १५ १४६ १९ २४ २७ ३० ३९१ ३२ दरद देष ४ ५० ५२ पदे ১]




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