अवधि और उनका साहित्य | Avdhi Aur Unka Sahitya

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Avdhi Aur Unka Sahitya by क्षेमचंद्र 'सुमन'- Kshemchandra 'Suman'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अवधी भाषा १9 ५. अपादान से सों, सों, ते, ते. सन, से, तें, तर्द; तं ६ सम्बन्ध का, की, के कौ,की,के क्र, केर, केर, केरी, के, कै, केरि श्रौ करर ७. अधिक्स्स॒ मे, पर, तकं पै, लौ, परि, म, मा, महें, पर, मे. मह, मोहि, मोहि मोजः सु हः सुदुः मकार, पे, परि, अपरि, पर, पर्यन्त लागि, लग | श्रतरधी वे अफारान्त पढों में कमी-ऋमी “आर? का विलोप हो जाता है । इस “झा के विल्ञोप के अनन्तर प्रायः धवाः प्रत्यय लगा दरिया जाता है| इसके अतिर्कि कमी-कमी ध््रौनाः भी जोड दिया जाता है। डदाहस्णार्थ यो कतिपय शब्दो का उल्लेख किया जाता है--घोडा, घोड, घोडवा, দীতীনা । छोय, छोट, छोटवा, दोटोना । लाला, लालबा, ललीना | अवधी के तीन रूप डॉक्टर श्यामसुन्दरदास ने अवधी फे अन्तर्गत तीन प्रमुख बोलियो अबधी, वघेली और छुत्तीसगढी को मान्यता प्रदान की है। उनका कथन है कि “श्रध के प्न्तर्गत तीन झ्लुस्य बोलियाँ ह--ध्यदधो, दघेली और छुत्तीसगढ़ी । अवधी और वधेली में कोई अन्तर नहीं हैं। बधेलखड में वोले जाने के ही कारण वहाँ वधी का नाम ववेललली पड गया । छत्तीसगढ़ी या सराठी और डड़िया का धमाव पड़ा दे और इस कारण वह अवधी से कुछ चातों में भिन्न हो गई है । हिन्दी-साहित्य में प्रवधी से एक अधान स्थान अहण कर लिया ।” ध यद्द तो हुआ अचधी के अ्रन्तर्गत उपलब्ध तीन वोलियों ऊे विपय में




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