श्रीकृष्णार्जुन युद्ध | ShreeKrisnarjun Yuddh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इन देवी-क्षणों को ठहराये रखना चाहा। वे इस परमानंद में स्तन्ध थे । इस समय विश्व-व्यापक की उपासना ही नहीं उसकी अजुभूति उनका रोम-रोम ` कर रहा था। पर संसार-नियंता ने कुछ शक्तियां चला दी हैं ओर वे चलती जाती हैं। विभिन्न विषमताय, संघषे ओर घटनायें उन्तकी पारस्परिक क्रीडा से उत्पन्न होती हैं । जान पड़ता है कि वे नियमित नहीं और इस अनियमितता को हमने अवसर अथवा भाग्य की संज्ञा दे डाली है । जिस समय गंधवेराज चित्रसेन अपने भविष्य का स्वर्णिम पट बरुन रहे थे ओर महर्षि गालब विश्वात्मा के साथ एकात्मता अनुभव कर रहे थे, उसी समय यह, विचित्र परन्तु अकास्य . शक्ति इन दोनों आनंदित प्राणियों म संबंध स्थापित करने में समर्थ हुई। देवताओं के गायक ने जो पान थूक दिया वह इसी शक्ति द्वारा परिचालित हो ऋषि की जल भरी अंजलि में झा गिरा। आकाश ओर मृत्युलोक में एक भीषण सम्बन्ध स्थापित हो गया। [ ११




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