हिंदी उपन्यास में चरित्रचित्रण का विकास | Hindia Upnayas Me Charitchitran Ka Vikas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
590
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(भः)
दहता का कार्ण क्याहै । एसा करते हुए उसकी रुचि उतनी चिरान्वेपरा में नही
रही, जितनी उन पात्रों को समभने भर उनकी व्याख्या करने में | दूसरे, उपस्यासो में
सरित्रचित्रण का स्वरूप-निरूपण करते समय लेखक ने सामास्यीकरण से बचने की
चेण्टा की है। किसी उपन्यासकार के चरित्रचित्रण की जब भी किसी विशिष्टता का
उसने उल्लेख किया है, उसके समर्थन में उस उपन्यासकार के एकाधिक उपन्यासो से
उद्धरण दिये है। तीसरे, गृढ़ से गृढ़ दार्शनिक या मतोवैज्ञानिक विपय का विवेचन
करते हुए भी लेखक मे भाषा का प्रसाद गुण बनाये रखने का प्रयत्त किया है ।
यहाँ पर लेखक उन विद्वानों के प्रति झ्राभार प्रकट करना अपना कर्त्तव्य सम-
भता है, जिनकी सहायता और हपा से यह प्रबन्ध सम्पन्न हो सका है । अनुपत्घान-
कामे प्रवृत्त होनिकी प्रेरणा लेलक कौ पूज्यवर पण्डित श्रयोध्यानाथ जी से
भिली । उनके भ्रासीर्वादि के बिता लेखक इस मार्ग पर एक पत्र भी नहीं चल सकता
था । लेखक पर उनका भारी ऋण है। श्रद्धेप डा० सिद्धेश्वर वर्मा, भूतपूव प्रधान
सम्पादक, केन्द्रीय हिंन्दी-निदेशालय, शिक्षा मस्त्रालय का तपःपृत व्यवितत्व इस कार्य
में लेखक के लिए प्रकाह्-स्तम्भ रहा है । समय-समय पर प्रपूल्य चसुकाव देकर भौर
प्रधन्ध भे प्रयुक्तं पारिभापिक शब्दावली के चुनाव में प५-प्रदर्शन करके उन्होने लेखक
पर जो श्रनुग्रह किया है, उसके लिए वह् सदा उपकार मानेगा। भ्रद्धेय डा० सेन्द्र,
प्रध्यक्ष, हिन्दी विभाग, दिल्ली विदवविद्यालय ने व्यस्त रहते हुए भी इस प्रवन्ध
को देखने की कृपा की है। उनके सत्परामक्षों के श्रभाव में प्रबन्ध श्रधूसा ही रह्
गया होता । लेखक उनका श्रत्यन्त श्राभारी है। डा० सोहनलाल, भूतपूर्वं चीफ
साइकॉलोजिस्ट, रक्षा मच्त्रालय ने इस प्रबन्व के मतोविज्ञान-सम्बन्धी श्रशों को सुन
कर और अनेक सुझाव देकर जो श्नुग्रह किया है, उसके लिए लेखक ऋणी है।
डा० विजये स्तातक, रीडर, हिन्दी किमाग, दिल्ली विष्वबिदयानय, श्रद्धय जैनेद्ध
कुमार जी तथा अझशेय जी ते इस प्रबन्ध को ब्राथन्त पढ़कर जो पमुल्य सुझाव दिये
है, उनके लिए लेखक हृदय से आभारी है। डा० प्रभाकर माचवे से लेखक को জী
प्रोत्साहन सिलता रहा है, उसके लिए वह कृतज्ञ है। इस प्रबन्ध के प्रणुयत् में लेखक
को देश-विदेश के अनेकानेक विद्वानों के ग्रन्थों से सहायता मिली है । लेखक उन
सभी विद्वानों के प्रति आभारी है।
यह् प्रबन्ध श्रद्धेय गुरुवर डा० गोविन्द त्रियुणायत, एम० ए०, पी-एच०
डी०, डी० लिट० के निर्देशन में लिखा गया है। उनके सत्पराम्शों का लेखक
ने कार्यारम्भ से लेकर श्रन्त तक पूरा-पूरा लाभ उठाया है। उनके अनुश्नह के बिता
यह श्रनुष्ठान पूर्ण होता सम्भव ही न था | उनके प्रति शाब्दिक श्राभार-प्रदर्शन लेखक
के हृदय-स्थित कृतज्ञतापूर्ण भावों को श्रभिव्यवत्त करने में शसमथ्थे होगा ।
नई दिल्ली रणवीर रांग्रा
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