चतुरी चमार | Chaturii Chamaar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)আন্তরী পবা. ११
चमार दबेगे, ब्राह्मण दबाएैगे। दवा ह्, दोनों की जडं मार दी जायं,
पर यह सहज-साध्य नहीं । सोचकर चुप हो गया ।
में अर्जुन को पढ़ाता था, तो स्नेह देकर, उसे श्रपनी ही तरह का
एक आदमी समभकर, उसके उच्चारण की त्रुटियों को पार करता हुआ ।
उसकी कमज़ोरियों की दरारें भविष्य में भर जायँगी, ऐसा विचार
रखता था । इसलिए कहाँ-कहाँ उसमें प्रमाद है, यह मुभे याद भी न
था। पर मेरे चिरंजीव ने चार ही दिन में अर्जुन की सारी कमज़ोरियों
का पता लगा लिया, और समय-असमय उसे घर बुलाकर (मेरी गैर-
हाज़िरी में) उन्हीं कमज़ोरियों के रास्ते उसकी जीभ को दोड़ाते हुए
ग्रपना मनोरंजन करने लगे । मुभे बाद को मालूम हुआ ।
सोमवार मियाँगंज के बाज़ार का दिन था। गोदत के पैसे मेनं
चतुरी कोदे दिये थे। डाकखाना तब मगरायर था। वहाँ से बाज़ार
नजदीक हं । में डाकखाने से प्रबन्ध भेजने के लिए टिकट लेकर टहलता
हुआ बाजार गया । चतुरी जूते की दूकान लिए बैठा था। मेंने कहा--
मे “कालिका (धोनी) भया भ्राये हए हं, चतुरी, हमारा गोरत उनके
हाथ भेज देना । तुम बाजार उठने पर जाग्रोगे, देर होगी ।“ चतुरी
ने कहा-- काका, एक बात ह, भ्रजुनवा तुमसे कहते डरता है, मे घर
आकर कहूंगा, बुरा न मानना लड़कों की बात का ।” अच्छा' कहकर
मेने बहुत कुछ सोच लिया। बक़र-क़साई के सलाम का उत्तर देकर
बादाम श्रौर ठण्डाई लेने के लिए बनियों की तरफ़ गया । बाजार मं
मुभ पहचाननेवाले न पहचाननेवालों को मेरी विशेषता से परिचित
करा रहे थे--चारों शोर से आँखें उठी हुई थीं--ताज्जुब यह था कि
अगर ऐसा आदमी है, तो मांस खाना-जेसा घुणित पाप क्यों करता
है। मुभ क्षण-मात्र में यह सब सम# लेने का काफ़ी अभ्यास हो गया
था । गृरुमुख ब्राह्मण आदि मेरे घड़े का पानी छोड़ चुके थे। गाँव तथा
पड़ोस के लड़के श्रपने-अ्रपनें भक्तिमान पिता-पितामहों को समभा
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