संघर्षों के बीच | Sangharshon Ke Beech

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च | सघर्षों के बीर्च ১ वे लोग कमरा खोलकर ही कियो परे खां बैठे | उनकी , बुआ भी आगई तखत पर बैठ गई और'“वेस्तोग) उनसे अपने मैच का वर्णन करने लगे । कैसे मैंन क्रिक लगाई, कैसे में गेंद लेकर बढा, कैसे गोल किया | बुआ कुछ समझते हुए, कुछ “न समभते हुए. उन लोगों की हॉ में हॉ मिलाती रहीं। मु के यह देखकर बडा ही आश्चय हुआ कि उन लोगों के घरवाले त्रिलोकी और राजो का हर बात में मुह जोहते थे, उनकी प्रसन्नता का ध्यान रखते थे ओर हम लोगों को तो घरवालों की प्रसन्नता बनी रहे इसके लिए. मन ही मन भगवान से प्रार्थना करनी पडती थी । इतने में उनके बैठके के दरवाजे के पास से आवाज आई-- “बेटा राजो, तिलोकी, पूरी तैयार है, परोतू ?? आपयाज के मिश्रित स्नेह से मैंने, अनुमान किया यह शायद इन लोगों की माँ होगी । राजो--“तुके तो भूख हे नहीं--भाभो, ज्रिलोकी खाए तो खा ले ।”? “नहीं मुझे भी भूख नहीं है ।?--ज्रिलोकी ने कहा | “क्यों आज भूख क्‍या हो गई तुम लोगों'की ??? “सुन्दर सिंह के यहाँ, आइसक्रीम खाई, फालूदा खाया और खस फा शर्बंत पिया--अब पेट में कहाँ से जगह आधे |?” राजो ने कहा, “अरे तो एक ही आध पूरी खालो बेग--चुन्नीलाल को बज्ञार ` मेजकर जो कुदं मेगवाना हो मेंगवाज़ो |”? “अब भाभो इस बखत तो नहीं खाते बनेगा 12, “अरे तो क्या ए्काध भी न खाते बनेगी, या मेगा दू) खड़ी या मलाई १? ४ “तुम तो पीछे ही पड गईं, अच्छा मलाई मेंगवा लो |?? नौंकर चुन्नीलाल थोड़ी देर में बाजार से मलाई ले आया और तब उन दोनों भाइयों ने बड़ी मुश्किल से थोडा-थोंडा खाया । कमरे में ही




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