प्रवचनसार | Parvachan Saar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्रवचनसार  - Parvachan Saar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हिंमतलाल जेठालाल शाह - Himmatalal Jethalal Shah

Add Infomation AboutHimmatalal Jethalal Shah

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हिन्दी भाषाका गौरव ! अनुवादक की ओरसे / ০২২২০ मै इसे अपना परम सौभाग्य मानता हं कि मुभे परभश्रत-प्रवचनसारका यह हिन्दी अनुवाद. करनेका सुयोग प्राप्त हुआ है । हिन्दी भाषाके लिये यह गौरवकी बात है कि लगभग १००० वषेके बाद श्री अस्ृतचन्द्राचायकी तत्त्वप्रदीपिका नामक संस्कृत टीकाका यह হাহা: अनुवाद ( भल्ते ही गुजरातीके द्वारा ) हुआ है। यद्यपि पांडे हेमराजजी ने भी हिन्दी अनुवाद किया था, किन्तु वह केचल भावानुवाद ही था। यह मेरे मित्र श्री. हिंमतल्लालभाई की ही बौद्धिक हिम्मत है कि उन्होंने ही सर्वप्रथम प्रवचन- सारकी तत्त्वप्रदीपिका का अ्क्षरश: भाषानुवाद ( गुजराती भाषामें ) किया है, जिसका हिन्दी अनुवाद करनेका सौभाग्य मुे प्राप्त हुआ है। काठियावाड़के सन्त पुरुष पूज्य श्री कानजीस्वामी स्वणंपुरी ( सोनगढ़ ) में बैठकर भगवान्‌ कुन्द- कुन्दाचायके सत्‌ साहित्यका जिस रोचक ढंगसे प्रचार और प्रसार कर रहे हैं वैसा गत कई शतादियोंमें किसी भी जैनाचायं ने नहीं किया । काठियावाड़के सैकड़ों-हजारों नर-नारी उनकी अध्यात्मवाणीको बड़े चावसे सुनते दै, ओर अध्यात्मोपदेशामृतका पान करते समय गद्‌ गद्‌ हो जाते है । पूज्य कानजी स्वामी का अदूभुत प्रभाव है। उन्हींके उपदेशोंसे प्रेरित होकर श्री हिंमतभाई ने प्रवचनसारकी गुजराती टीका की है। उन्होंने इस कार्यमें भारी परिश्रम किया है। मैंने तो केबल उनके गुजराती शब्दोंकी साधारण हिन्दीमें परिवर्तित कर दिया है। अतः मैं श्री हिम्मतमाईका आभार मानता हूँ कि आपके द्वारा निर्मित प्रशस्त सागे पर सरलतापूवक चलने का मुझे! भी सौभाग्य प्राप्त होगया है। जैनेन्द्रपेस, ललितपुर परमेष्ठीदास जैन “श्रुतपंचसी, वीर सं. २४५७६ न्यायतीयं धथ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now