धन्वन्तरि माधवनिदानांक | Dhanavantari Madhavanidanank

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : धन्वन्तरि माधवनिदानांक  - Dhanavantari Madhavanidanank

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

महान भक्ति कवि पं दौलत राम का जन्म तत्कालीन जयपुर राज्य के वासवा शहर में हुआ था। कासलीवाल गोत्र के वे खंडेलवाल जैन थे। उनका जन्म का नाम बेगराज था। उनके पिता आनंदराम जयपुर के शासक की एक वरिष्ठ सेवा में थे और उनके निर्देशों के तहत जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के साथ दिल्ली में रहते थे। उन्होंने 1735 में समाप्त कर दिया था जबकि पं। दौलत राम 43 वर्ष के थे। अपने पिता के बाद, उनके बड़े भाई निर्भय राम महाराजा अभय सिंह के साथ दिल्ली में रहते थे। उनके दूसरे भाई बख्तावर लाई का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है।

पंडितजी के प्रारंभिक जीवन और शिक्षा के स्थान के बारे में कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। दौलत राम। चूंकि उनके प

Read More About Daulatramji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
৯৯ ০৮০০০: की, সা (५) - ` गत वषे इन्हीं दिनों जव सुमते निदानांक का ` सम्पादन. करने के लिए श्राम्रह. फिया गया उस समय में चंड दहिविधा मँ पड़गया था । कारण बहुत से थे किप्तु उनमें से दो अत्यन्त महत्वपूर्ण थे- पहला तो यंह कि मैंने:उस समय योनस्वास्थ्य विज्ञान! . नामक प्रन्थ लिखने का श्रीगणेश ही किया था भर : दूसरा यह है कि इतना बढ़ा एवं जिम्मेदारी पूर्ण ` काय इससे पहले कमो चया नहीं था इसलिये कुछ भय अथवा संकोच होता था । लेख .अथवा पुस्तक [नि . ` लिखना अलग बात है और टीका करना: तथा विशेषांक का सम्पादन करना एक अलग वातं है} समय की कमी मेरे पास सदा से ही रही दे और यह कायं . : अवधि के भीतर पूरा करना अनिवाय था इसलिए ` पैर डगमगां रहे थे 1 इसके अतिरिक्त में अपने भीतर के টু ~ ~ টড ই 5 ” भी कई प्रकार की कमजोरियां पाता था। विषय : भी ऐसा दिया गया था जो चिकित्सा संबन्धी विषयों : में सबसे कठिन माना जाता है । एक ओर जहां » इस काय सें घोर परिश्रम एवं कठिनाइयों का सामना .- था वहीं दूसरी ओर देश भर के विद्वानों से परि- : चित होने का, गुरु-ऋण से युक्त होने का तथा अपने चिरकाल के स्वप्न को पूर्ण करने का अवसंर ` हाथ से न जाने देने का लालच भी था। . चिरकाल এ सेरी यह अभिलाषा रही दे कि धन्वन्तरिं के | ¦ विशेषांकों की रूपरेखा में कुछ विशिष्ट परिवतेन . किये जावें और यह तभी संभव था जवं सम्पादन मेरे ही हाथों से हो, दूसरों को सलाह देता व्यथ था।.. .. - के बाहर कीं बात है तो ऐसा मीका न आता | हां, इसलिए अन्त सें लालच ही की विजय हुई और स्वीकृति भेज दो गयी । | विषय-सूची- बनाते समय. इस बात का पूरा पूरा ध्यान रखा गया था कि निदान-संबंधी कोई विषय. . छूटने न पावे किन्तु फिर भी कुछ लोगों ने शिकायत “ को कि आयुर्वेद-संबंधी विषय कम हो. रहे আহ शिकायत निरथक दी थी क्योंकि आयुर्वेद का कोई भी विषय छोड़ा नहीं गया था, ऐलोपथी. फे कुछ विषय. अवश्य दिये गये थे। वास्तविक बात यहं - थी कि विषय कठिन थे और उनमें से . अधिकांश ऐसे थे जिन पर उभय-पद्धतियो के विद्वान ही लेखनी 'डठा सकते थे ओर ,यह बात स्पष्ट रूप से स्वीकार करने में लोगों को संकोच होना स्वाभाविक द्दीथा। इस बार लेख लिखने के पूवं श्रतुमति लेने की बात एकदम नयी थी । नये सम्पादक के द्वारा चालू ` . की गयी यह नई पद्धति कुछ विद्वानों को अनधिकार- चेष्टा प्रतीत हुई किन्तु अधिकांश ने इसका स्वागत ही किया । दो विद्वानों ने इस आशय के पत्र दिये थे कि विषय स्वयं चुनना उनकी शान के खिलाफ है, सम्पादक द्वी उत्तके लिए विषय चुन कर भेजें | किंतु जब उनके लिये २-२ विषय. चुनकर भेजे -गये तो एक महाशय नेः सन्तर ही नदीं दिया ओर <दूसरे - समय की कमी का बहाना बनाकर किनारा काट - गये !. इन अभिमानी महापंडित ने अपने ही हाथों. ` आपने आपको उपद्वास का पात्र बताया । यदि वें. . देख लेते कि विषय-सूची में आधे से अधिक विषय ऐसे हें जिन पर एक शब्द भी लिख सकता उनके बस तो यह्‌ नयी पद्धति चालू करने का कारण यह , ~ आह 7




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now