अवंतिका | Avantika
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
485
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about लक्ष्मीनारायण 'सुधांशु '- Laxminarayan 'Sudhanshu'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सपादवीय +
गह-मंदी श्री संपूर्णानिंद ने सरकार के जिस क््लेश का
उल्लेख श्रिया है, हम मानते दे कि आलोचकों की अपेक्ता
ससार को दुध क्म क्लेय नहीं हुआ होगा ] पर अयसर
मिलने पर सरकार के राजनेतिक आलोचकों का राजनंतिक
বয় থু जाना स्थामायिक है | सरकार से गल्नत्याँ हुई
हैं और गलतियाँ दी जाने पर दी गलवियाँ कडइलादी ই)
जहाँ तर सफाई के प्रबंध की बाठ थी, सबने इसकी प्रय॑सा
की | विधान समा में सरकार की ओर से इस संबंध में
गर्गोक्ति भी की गई कि सफाई का इतना सु'दर प्रबंध मेले
में किया गया था कि आदमी की वात कौन पूछे, एक
मक्सीकोमी दैना नदी हुआ। उतनी बड़ी भीड़ में
सरकार ने संफाएँ का नो पर्व क्रिया था चद् अयश्य ही
प्रशसनीय था, हिंतु मेले और नगर के अस्पवालों में
धीमारियों के जो आँकड़े हैं वे सरकार की इस गर्वोक्ति
का पूर्णतः समर्थन नहीं करते ।
मेले में जो मीढ़ एकत्र हुईं बह बहुत श्राशातीत नहीं
थी | सरकार ने ५०-६० लाख की भीड़ का अनुमान करके
ही व्ययस्था शुरू की थी। सरकार की और से मीड़ को
आममनित किया गया था | रेलवे तथा श्रन्य यातायात वी
सारी सुतरिवाएँ दी गई थौं। अनियार्य टीके के कारण
भीड़ का जो नियनण था उसे चा० २७ जनवरी को
अकस्मात् उठा लिया गया था । मेले की यिम्तृव भूमि पर
खनेक स्थलों में सरकारी कैप डाले गए. ये, श्रधयाजारी दर
पर दूकानदारों को दुकानों के लिए टी दिए गए ये । सर-
कार की ओर से भी मीड़ को बढ्ाऊर मुनाफेवाजी करने
की कोशिश की गई थीं | ये सब बातें सरकार के लिए
शोमनीय नहीं हैं | इस दुर्घटना के समाचार से देश-विदेश
का मानउन्समाज कुब्ध तथा विपएण हो उठा है ) अब इस
डु्घटना पर विशेष तक-पित्क करने की ग्रावरयक्वा नदी ।
इससे जो चेतावनी ली जा सकती है बद जनता तथा सर-
कार को अवश्य ले लेनी चाहिए।
४, राजकीय पद, पदाधिकारी तथा नामों का
दिंदीकरण
राजकीय कार्यालयों में राष्ट्रभापा धय! राजमापा हिंदी के
व्यदद्वार की जो प्रगठि है वद॒ बिलकुल संतोपजनक नहीं
| यह अपेश्य ही मसन्नता की बात है कि राजकीय
उमारोहों के छोटेजढ़े अयसरों पर राष्ट्रपठि तथा प्रधान
नरी करीर याव्य-चस्वासौ के यनेक मंत्रिगण प्रधिपठर ददी
रिदी मापण करते हैं। इसके साथ अवश्य दी यद हु
की बात दे हि राजकीय विभागों के सचियगण उसी
दस्यसवा के साय दिंदीसरण में संदयोग नहीं दे रहे हैं ।
शायद वे यह समर रहे दे कि अंगरेजी के पिना भारत का
राजफार्य चल ही नहीं सकता ) हमारे नेता, सौमास्ख से
आज जिनके हाथो में शासन की बागडोर मी है, अपने
सचि के भ्रम को जितनी शीम्रता से हो सके, दूर करें|
आज मारत की अविकाश जनवा निरक्षर है। जो थोडे-्से
लोग हिंदी या अपनी अन्य मातृभाषा की थोड़ी-सी जानकारी
र्पते हैं उनसे यह आशा करना ऊि ये अंगरेनी के
माध्यम से सरकार के साथ अपना सपर्फ स्थापित करें,
अशोमनीय ही नहीं, छोमप्रद बात है।
राजकीय कार्यालयों में राष्ट्रमापा तथा राजमापा
हिंदी के पूर्णतः प्रयोग वी बात तो দু टे, राजकीय पद,
पदाधिकारियों तथा नामों का हिंदीकरण मी पूरी तरह
अपग्रतऊ नहीं दो सका है। मारतीय राष्ट्र के प्रेसिडेंट आन
साधारणतः राति दी कंदे जाते £, प्राइम मिनिष्टर मी
प्रधान मंत्री क्दे जाते हैं, क्ितु दिंदीरण का गाय
केवल इतना ही नहीं कि इिंदीमापा में प्रेसिदेंट के बदले
राष्ट्रपति और प्राइम मिनिस्टर के बदले प्रधान मंत्री लिखा,
पढ़ा या बोला जाय। दिंदीकरण से अ्मिषाय यह है कि
ধরা था नाम वी तरद अंगरेजी मापा में मी राष्ट्रति या
प्रधान मंत्री ही लिखा, पढ़ा या बोला जाय, जहाँ और
जय बसी आवश्यकता पड़े | मारत का यह परम दुर्भाग्य
हं कि राष्ट्र का नाम भार मी अंगरेजी में अनुवाद के
समान ही इंडिया? कह्दा जाता है, चाहे घढ नाम इड्स्
से द्वी क्यों न निकला माना जाता हो ) राजकीय पदों और
पदाधिकारियों का हिंदीकरण अविलव हो जाना चाहिए |
इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का नाम आज हमें किस
बीते दिन की याद दिला रहा है | भारतीय राज्यों के
नामों में अब अधिकाशतः दिंदी का ही प्रयोग क्रिया जा
रहा है, फ़िर भी कमी-कमी उत्तरञदेश के बदले यू० पी०,
पश्चिम बंगाल के बदले बेस्ट बगाल, पूर्वी पंजाव के बदले
इस्ट पंजाब, पटियाला तथ। पूर्वी पजाव स्थासती संघ के
नाम के बदले पेप्सू कहे जाते हैं। सेंट्रल इंडिया, सेंट्रल
इंडिया यजेंसी तथा सेंट्रल प्रोगिंस के श्रंगरेजी नाम अब
मायः च्व दति ना रहे हैं, यई संदोष की वात है। रेलवे
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