भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा | Bharatiya Arthvyavastha Ki Disha
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
179
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)৪ मारतीय अर्थव्यवरथा की दिशा
दीव्र विकास की राह दर्शाने मे अधिक रामर्थ नहीं है। निजी उद्यमी नियोजन
काल में सरकार की संरक्षणात्मक रीति के कारण फले-फूले। उनमे
प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति का अभाव है। आज निजी क्षेत्र को उदारीकरण के दौर
मे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और प्रत्यक्ष विदेशी निवेशकों को चामने खुली
प्रतिस्पर्धा मे छोड दिया गया। भारतीय उद्यमियों मे आधुनिक तकनीक के
अभाव मे विदेशी निवेशको से प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता नहीं है। आर्थिक
सुधार लागू करने के बाद निजी क्षेत्र के अनेक उद्योग घाटे की रामस्था से
ग्रसित हो गये हैं। इसके अतिरिक्त अनैक उद्योग रुप्णता के शिकार हैं। भारत
में नए उद्योगों की स्थापना नहीं होने से और चालू उद्योगों के बन्द पड़े होने
से बेरोजगारी की समस्या मुखर हो गई है।
भारत जनाधिक्य वाला देश है। यहा की परिस्थितियां श्रम प्रधान
तकनीक के अनुकूल है। किन्तु आर्थिक उदारीकरण से पूजी प्रधान तकनीक
को गति मिली है। विदेशी पूजी निवेशकों द्वारा आधुनिक त्तकनीक का प्रयोग
किया जाता है। इससे देश मे रोजगार के अबसर घटे हैं। आर्थिक उदारीकरण
का लाभ दीर्घकाल से दृष्टिगोचर होगा। उदारीकरण के अत्यफालिक
परिणामो भँ अर्थव्यवस्था मे उद्योग मंदी की चपेट रो प्रसित्त हए तथा
बेरोजगारी की समस्या न विकराल रूप धारण किया।
बेरोजगार : भारत में प्रत्येक वर्ष रोजगार चाहने वालों की संख्या की
तुलना में रोजगार के अवशर बहुत कम बढ़ पाते हैं। जनसंख्या भे हरेक वर्ष
डेढ से दो करोड लोग बढ जाते हैं और रोजगार के अवसर भुश्किल से 60
से 10 लाख तक ही बढ़ पाते हैं यानी प्रत्येक दर्ष रोजगार चाहने वाले सवा
करोड तक वढतत ई। जनसंख्या ओर श्रम शक्ति की तीव्र वृद्धि से बेरोजगारी
बढी है। रोजगार कार्यालयों में पजीकृत आवेदकों की संख्या भयावह गति से
बढ रही है| रोजगार कार्यालय मुख्यत्॒ शहरी क्षेत्रों मैं होते हैं। इन कार्यालयों
में सभी बेरोजगार अपने नाम पजीकृत नहीं करवाते हैं। रोजगार कार्यालयों
मे रोजगार के इच्छुक व्यक्तियों के दर्ज नामो की सख्या 31 दिसम्बर, 1981
तक 178.36 लाख थी, जो 31 दिसम्बर 1992 तक बढ़कर 368 लाख हो
गई | सरकारी आंकडो के अनुसार दिसम्बरं 1996 से दिसम्बर 1997 की
अवधि म रोजगार कार्यालयों मे रोजगार चाहने वालो की सख्या 374 लाय
से बढकर 380 लाख हो गई । सरकारी अनुमान के मुताबिक नौवी पचवर्षीय
योजना अवधि (1991.2602) में जनसंख्या 94 करोड 98 लाख से बढकर
एक अरब 2 करोड़ होने का अनुमान है। इनमे से काम करने बालों की
सख्या 5972 करोड 'से बढकर 452 करोड होगी जबकि बेरोजगारों की
सख्या इस अवधि मे 590 करोड तक बढने का अर्नुमान है अर्थात् बेरोजगारों
User Reviews
No Reviews | Add Yours...