आनंदाम्बुनिधिकी | Aanandaambunidhiki
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
239 MB
कुल पष्ठ :
789
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीमद्भागवत-स्कंध १. (३)
दोहा-मंत्रस्त्कुलकमलरवि, श्रीमन्नाथमुनीश । वंदोंतिनकेपद्विमल, पुनिषुनिधरिमहिशीश ॥
शिष्यतासजवारमनीशा । पुनिषुनिनाऊंतिनपदशीशा ॥ तासुसोम्यजामातरस्वामी । तिनपदवारहिंघारनमामी ॥
तिनकेशिष्यजगतजनत्राता । निजजनकहँश्रीहरिपददाता ॥ कृपापाज्नीलाद्विनाथके । वद्धेकवरवेदांतगाथके ॥
आसंप्रदासमुद्रसधाकर । कारुण्यादिगुणनकेआकर ॥ वासकियोनीलाचलमाही | कियरद्धारअमितजनकाही ॥
कृपासिध श्रीराजगोपाला । वंदोंतिनपददीनद्याठा ॥ जाकेवलजगसागरतरिहों | यहकलिकाठकरालनडरिहों ॥
न् दोहा-हेश्रीराजगोपाल प्रभु, तवपदकृपाभधार । सोलहिभानेदअंबुनिधि, जानचहोंभवपार ॥
चो° পাবনার कृपापात्रविनतासुतगामी॥जगजीवनठखिपरमअनाथा।प्रगटेकनरजदेशहिनाथा ॥
कछुकालहिमेभयोविरागा। हरिपद्महँउपन््योअनुरागा॥कुछपखि रगेहतजिदी नही । कछुद्निगंगसेवनकीन्हो ॥
पुनिअसमनविचारकियनाथा । दरहानकरहुनिलाचलनाथा ॥करतपयटनदेशनिमाही । देतज्ञानवहुलोगनकाही ॥
नीलाचलकहँगयेकृपाला | दरशनलेजनभयेनिहाला ॥ लेद्रशनजगदीशहिकेरों | वसेसहितआनंदबनेरों ।
दोहा-तहँ श्रीरजगोपालगुरु, निनठिगप्रभुकीआनि । कियोसमाश्रेसुदितमन, महतपुरुषपहिचानि॥
चो ०-तहॉनाथकछुकालहिमाही।पढ्योनिखिल्वेदां तनिकाही॥इतिहासन पुराण प्राची ने । ओरोभक्तिमंथपढ़िलीने ॥
सेवनकरहिसमहाप्रसादा । रहहिएकांतसहितअहलादा॥हरिविसुखनकहँकरिउपदेशा। दियो प्रापिकरि श्री पतिदेशा ॥
सिखवतजननभक्तिकीरीती।यहिविधिगयोकालकछुबीती ॥ श्रीगुरुगजगोपाठविज्ञानी । यहअपनेमनमें भनु मानी ॥
सबआचारयननिकटबोलायो । सभामध्यअसवेनसुनायो॥ममस्थानभधिपकेलायक।कियोम॒ुकु दहि श्रीरषु नायक ॥
दोहा-कृपापाजनगदीरके) एटै्ञानभगार । इन्दैसोपिदीबोरवितः भर न कंषटूविचार ॥
चो -सोसुनिसथसम्मतयदकीन्दे पदवीभावारनकीदीन्दे।कट्योबहुरितिनकोगुरक्ञानी। यदेश्वयं ठेहुरणखानी॥
सोनलियोगुरुआयसुमाँगी । हांतिचलेकृष्णभनुरागी ॥ आयेतीथराजमहँनाथा। जहाँकियोबहुजननसनाथा ॥
पुनिबदरीवनकहँप्रभुजाई । रहेतहौकछुदिनचित॒ठाई ॥ हरिद्वारलोहितपुरहेके | नेमिषकुरक्षेत्रपटन्वेंके ॥
अवृधपुरीओजनकनगरमहँ । कियोवासएकांतसोथलमहँ ॥पुनिमशु राकहँगयेकृपछा । तहाँकियोसतसंगविसाला ॥
दोहा-तहँममपितुगुरुनामजेहि, प्रियादाससुनिरान । ब्रजमंडलूविचरतमिले, लेसगसंतसमाज ॥
चो *-प्रियादासवोलेवरज्ञानी | तुमहोसकलज्ञानकेंखानी ॥ भनहुभागवतकरसप्ताहा | सबसंतनमंधिहोइउछाहा ॥
सोसुनिमुद्तिकीनआरंसा । रचितहँसप्तकोककोसंभा ॥ तामेंशुकयकवैद्योभाई । अरुयकभहितहँपरयोदिखाई ॥
तिनलखिप्रियादासकहवानी।कथासुननआयेदोउज्ञानी॥तवअहिआइस म्भमें ठपट्यो। यद्पिभ क्षपेसक हिनझ पट यो ॥
होतअरंभनितेदीउआंवें । कथासमाप्तभयेदोउजावें ॥ जबसप्ताहइसमापतभयऊ । तेहिदिनदोऊतनुतजिदयऊ॥
दोहा-यहअचरणलचिसन्तसव, मुक्तगुण्योदोउकाहिं। हरिगुरुकी प्रियदासकी, प्रस्तुतिकरी तहाहि ॥
चो०-कछुदिनवपितहँफेरिकृपाला।गंगातटकहँचलेउताठा॥ यक थरत्रह्मशिलाजेहिनामा । गंगातटसुंदरसुख पामा॥
ताकेनिकटबसे प्रभुआाई । पुरवासीसवखबरिहिपाई ॥ आयेसकल किये परणामा । दरश्षपाइ पूणे मनकामा ॥
कहों न यहथलनिषसनयोगू । इहाँनआवहिं दिवशहुलोगू ॥ रहतबल्नराक्षयहिठामा।महाभयानकतनुछुतछामा ॥
जोकीउबसत इहांदिनराती।मारततेहिप्रत्यक्षयदिछाती ॥ चलहुवेगि वसियेयहिग्रामा।करहु पवित्रसकलजनधामा॥
दोहा-बिहैसि कहो प्रधुअब अवशि, करिहों दे निवास । सवथलमेनिवसतसद्) रधुपतिरमानिवास ॥ २४ ॥
चौ०-अह्यशिलामपिऐनपुरानो । रहतर्योतरब्नमहानो॥ तहाँवासकीन्होप्रधुजाई । अतिरमणीयदेखिसुखपाई॥
तहाँत्रह्नराक्षमनिंशिभायो। प्रभुहिनिरखितवसोगोहरायो॥ कियोकृ तारथ मोहिकृपाछा। बसहुनाथयहिधामावेसाला ॥
यहिथलमहँ बॉचहु सप्ताह । मोहितारिदीन सुनिनाह्॥ सुनतवचन दाया उरआई । पियो ताहिसप्ताह सुनाई ॥
की पुरवासिनउर विस्मयआई ॥ নন सुषजन आई । उह मततं अनं
हा-या विधिप्रभुकेवसतुतहँ, सूयेप्रसादहिनाम। आये टसो, जानचहत हृहरिधाम ॥. त
चो °-कश्योनाथसं मोहिगतिवेहबॉचिभागवतमहयझ्लेह् ॥ प्रभुकदश्रमहहेअतिमोको को नप्रका रसुनेहों तोको ॥
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