आनंदाम्बुनिधिकी | Aanandaambunidhiki

Aanandaambunidhiki by श्रीकृष्ण दास - Shree Krishna Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीमद्भागवत-स्कंध १. (३) दोहा-मंत्रस्त्कुलकमलरवि, श्रीमन्नाथमुनीश । वंदोंतिनकेपद्‌विमल, पुनिषुनिधरिमहिशीश ॥ शिष्यतासजवारमनीशा । पुनिषुनिनाऊंतिनपदशीशा ॥ तासुसोम्यजामातरस्वामी । तिनपदवारहिंघारनमामी ॥ तिनकेशिष्यजगतजनत्राता । निजजनकहँश्रीहरिपददाता ॥ कृपापाज्नीलाद्विनाथके । वद्धेकवरवेदांतगाथके ॥ आसंप्रदासमुद्रसधाकर । कारुण्यादिगुणनकेआकर ॥ वासकियोनीलाचलमाही | कियरद्धारअमितजनकाही ॥ कृपासिध श्रीराजगोपाला । वंदोंतिनपददीनद्याठा ॥ जाकेवलजगसागरतरिहों | यहकलिकाठकरालनडरिहों ॥ न्‍ दोहा-हेश्रीराजगोपाल प्रभु, तवपदकृपाभधार । सोलहिभानेदअंबुनिधि, जानचहोंभवपार ॥ चो° পাবনার कृपापात्रविनतासुतगामी॥जगजीवनठखिपरमअनाथा।प्रगटेकनरजदेशहिनाथा ॥ कछुकालहिमेभयोविरागा। हरिपद्महँउपन्‍्योअनुरागा॥कुछपखि रगेहतजिदी नही । कछुद्निगंगसेवनकीन्हो ॥ पुनिअसमनविचारकियनाथा । दरहानकरहुनिलाचलनाथा ॥करतपयटनदेशनिमाही । देतज्ञानवहुलोगनकाही ॥ नीलाचलकहँगयेकृपाला | दरशनलेजनभयेनिहाला ॥ लेद्रशनजगदीशहिकेरों | वसेसहितआनंदबनेरों । दोहा-तहँ श्रीरजगोपालगुरु, निनठिगप्रभुकीआनि । कियोसमाश्रेसुदितमन, महतपुरुषपहिचानि॥ चो ०-तहॉनाथकछुकालहिमाही।पढ्योनिखिल्वेदां तनिकाही॥इतिहासन पुराण प्राची ने । ओरोभक्तिमंथपढ़िलीने ॥ सेवनकरहिसमहाप्रसादा । रहहिएकांतसहितअहलादा॥हरिविसुखनकहँकरिउपदेशा। दियो प्रापिकरि श्री पतिदेशा ॥ सिखवतजननभक्तिकीरीती।यहिविधिगयोकालकछुबीती ॥ श्रीगुरुगजगोपाठविज्ञानी । यहअपनेमनमें भनु मानी ॥ सबआचारयननिकटबोलायो । सभामध्यअसवेनसुनायो॥ममस्थानभधिपकेलायक।कियोम॒ुकु दहि श्रीरषु नायक ॥ दोहा-कृपापाजनगदीरके) एटै्ञानभगार । इन्दैसोपिदीबोरवितः भर न कंषटूविचार ॥ चो -सोसुनिसथसम्मतयदकीन्दे पदवीभावारनकीदीन्दे।कट्योबहुरितिनकोगुरक्ञानी। यदेश्वयं ठेहुरणखानी॥ सोनलियोगुरुआयसुमाँगी । हांतिचलेकृष्णभनुरागी ॥ आयेतीथराजमहँनाथा। जहाँकियोबहुजननसनाथा ॥ पुनिबदरीवनकहँप्रभुजाई । रहेतहौकछुदिनचित॒ठाई ॥ हरिद्वारलोहितपुरहेके | नेमिषकुरक्षेत्रपटन्वेंके ॥ अवृधपुरीओजनकनगरमहँ । कियोवासएकांतसोथलमहँ ॥पुनिमशु राकहँगयेकृपछा । तहाँकियोसतसंगविसाला ॥ दोहा-तहँममपितुगुरुनामजेहि, प्रियादाससुनिरान । ब्रजमंडलूविचरतमिले, लेसगसंतसमाज ॥ चो *-प्रियादासवोलेवरज्ञानी | तुमहोसकलज्ञानकेंखानी ॥ भनहुभागवतकरसप्ताहा | सबसंतनमंधिहोइउछाहा ॥ सोसुनिमुद्तिकीनआरंसा । रचितहँसप्तकोककोसंभा ॥ तामेंशुकयकवैद्योभाई । अरुयकभहितहँपरयोदिखाई ॥ तिनलखिप्रियादासकहवानी।कथासुननआयेदोउज्ञानी॥तवअहिआइस म्भमें ठपट्यो। यद्पिभ क्षपेसक हिनझ पट यो ॥ होतअरंभनितेदीउआंवें । कथासमाप्तभयेदोउजावें ॥ जबसप्ताहइसमापतभयऊ । तेहिदिनदोऊतनुतजिदयऊ॥ दोहा-यहअचरणलचिसन्तसव, मुक्तगुण्योदोउकाहिं। हरिगुरुकी प्रियदासकी, प्रस्तुतिकरी तहाहि ॥ चो०-कछुदिनवपितहँफेरिकृपाला।गंगातटकहँचलेउताठा॥ यक थरत्रह्मशिलाजेहिनामा । गंगातटसुंदरसुख पामा॥ ताकेनिकटबसे प्रभुआाई । पुरवासीसवखबरिहिपाई ॥ आयेसकल किये परणामा । दरश्षपाइ पूणे मनकामा ॥ कहों न यहथलनिषसनयोगू । इहाँनआवहिं दिवशहुलोगू ॥ रहतबल्नराक्षयहिठामा।महाभयानकतनुछुतछामा ॥ जोकीउबसत इहांदिनराती।मारततेहिप्रत्यक्षयदिछाती ॥ चलहुवेगि वसियेयहिग्रामा।करहु पवित्रसकलजनधामा॥ दोहा-बिहैसि कहो प्रधुअब अवशि, करिहों दे निवास । सवथलमेनिवसतसद्‌) रधुपतिरमानिवास ॥ २४ ॥ चौ०-अह्यशिलामपिऐनपुरानो । रहतर्योतरब्नमहानो॥ तहाँवासकीन्होप्रधुजाई । अतिरमणीयदेखिसुखपाई॥ तहाँत्रह्नराक्षमनिंशिभायो। प्रभुहिनिरखितवसोगोहरायो॥ कियोकृ तारथ मोहिकृपाछा। बसहुनाथयहिधामावेसाला ॥ यहिथलमहँ बॉचहु सप्ताह । मोहितारिदीन सुनिनाह्‌॥ सुनतवचन दाया उरआई । पियो ताहिसप्ताह सुनाई ॥ की पुरवासिनउर विस्मयआई ॥ নন सुषजन आई । उह मततं अनं हा-या विधिप्रभुकेवसतुतहँ, सूयेप्रसादहिनाम। आये टसो, जानचहत हृहरिधाम ॥. त चो °-कश्योनाथसं मोहिगतिवेहबॉचिभागवतमहयझ्लेह्‌ ॥ प्रभुकदश्रमहहेअतिमोको को नप्रका रसुनेहों तोको ॥




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