श्रेष्ट पौराणिक नारियां | Shreshtha Pauranik Naariya

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Shreshtha Pauranik Naariya by यादवेन्द्र शर्मा ' चन्द्र ' - Yadvendra Sharma 'Chandra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उसके समीप आकर उसे अपने गले लगाया। “यूं ही, पिताजी।'' “सुनो बेटी!” रानी ने स्नेह से कहा, “तुम्हारे पिताजी तुम से कुछ कहना चाहते हैं। ध्यान से सुनो। “कहिए, पिताजी।'' सावित्री ने सिर झुकाए हुए कहा, “मैं आपकी बेटी हूं। आपकी हर बात को सुनना मेरा धर्म है। आपकी हर आज्ञा का पालन करना मेरा कर्तव्य है। आप जो चाहें, कहिए।'' राजा ने गंभीर स्वर में कहा, “अब तुम युवा हो गई हो, यानी कली से फूल। दूसरे शब्दों में विवाह के योग्य...हम चाहते हैं कि तुम्हारे लिए किसी योग्य वर की खोज करके हम अपने धर्म का पालन करें।'' “पिताजी, में भी आपकी हर आज्ञा मानकर अपने धर्म का पालन करूंगी।' सावित्री ने विनीत स्वर में कहा। > “तुम योग्य व समञ्चदार हो, अतः इस विषय मे हम तुम्हारी इच्छा की स्वतंत्रता चाहते हैं।'' राजा ने कहा, “तुम्हें संकोच करना और डरना नहीं चाहिए। यदि तुम्हें कोई पुरुष पसंद हो तो हमें बताओ। सावित्री ने कहा, ' पिताजी ! मुझे आपने बहुत स्वतंत्रता दे रखी है पर जो कन्या मर्यादा के बाहर जाती है, वह अधर्म ही करती है। मर्यादा स्त्री का धर्म है। जो काम मां-बाप की सीमा में है, उसे भला मैं आपकी आज्ञा के बिना केसे कर सकती हूं? मैं जानती हूं कि हमारे यहां इस तरह की स्वतंत्रता नहीं है।'' “मुझे तुमसे यही आशा थी, बेटी।'' रानी ने स्नेह से कहा। 'राजा ने कहा, “मैं चाहता हूं कि तुम अपना मनपसंद वर खुद ढूंढो। मैं हर प्रकार से सक्षम बाप हूं। अपनी बेटी की हर इच्छा को मैं किसी भी सूरत में पूरी कर सकता हूं। तुम्हारी इच्छा भी पूरी करूंगा। तुम अपने लिए लड़के को पसंद करो। भगवान ने चाहा तो सब ठीक होगा ।'' “जैसी आपकी आज्ञा।' राजा और रानी चले गए। दासियों व सखियों ने सावित्री को फिर घेर लिया। वे उससे हँसी- ठिठोली करने लगीं। সস 14 ७ श्रेष्ठ पौराणिक नारियां .




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