दुर्गम पथ | Durgam Path
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काश्मी र-घाटी का युद्ध १७
साथ वीरता और साहस का था। किन्तु जब कोई संख्या के वल पर
वीरता श्रौर साहस का सामना करने निकलता, तो स्वभावतः वहू
दुर्वल बन सकता है ।
शत्रु के पाँव उखड़े, किन्तु हमारे नायक अ्रसावधान नहीं थे ।
वे जानते थे कि पीछे हटने वाले शत्रु से मुकाबला करते रहने वाले
शत्र की श्रपेक्षा अ्रधिक सावधान रहना होता है। यह बात बिल्कुल
ऐसी ही है कि सिंह के शिकार के समय, जब कभी सिंह के लिए श्रन्य
कोई उपाय नहीं रहता, और वह आक्रांता पर श्राक्रमण की सोचता
है, तो वह एकाएक दुबक-सा जाता है, श्र अ्रपने श्रग्नभाग को
पिछले टाँगों की दिद्या में संकुचित कर लेता है) कच्चे शिकारी,
वहुधा एसे समय मार खा जाते हूँ। ठीक यही अवस्था पीछे हटने
वाले शत्रु की होती है। और तव, थोड़े ही समय बाद दूसरा श्राक्रमण
हुआ। कर्मसिंह की युद्ध-सामग्री का भी अन्त निकट था। गोली-
वारूद कौ जो पूंजी उक्त समय थी, उसमें वृद्धि हो सकना अ्रसम्भव
था। शत्रु की इस भयंकर गोलावारी में सहायता भी आती तो कैसे ?
तिस पर कर्म॑सिंह अपने एक साथी सहित घायल हो चुके थे। ऐसी
ग्रसहाय दशा में भी कर्मसह ने अपने मस्तिष्क को स्थिर रखा। इस
भीषण वमवर्पा की विद्यमानता में भी उन्होंने श्रपनें साथियों को
सचेत किया; मृत्यु से लोहा लेने की प्रेरणा की। कर्मसिह् वोले--
“यह जीवन बारम्बार नहीं मिलता। कर दिखाने का यही श्रवसर
है । जो करके दिखा देते है, संसार उन्हीं का लोहा मानता है। वही
वीर होते हे प्रर संसार मे मृत्यु के उपरांत वीरों की सदा पूजा
होती है, और होती रहेगी ।” |
मानो साथियों मे नया जीवन श्रा गया । एक-एक शत्रु का सामना
करने के लिए सब सामने थ्रा गए। हथ-गोलों (ग्रेनेंड) से युद्ध आरंभ
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