राय हरिहर | Ray Harihar
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पतम् चदय १४
च्छों के दोनों हाथों में लड॒दू थे। या तो पांडय नष्ट होगे या होपगल
पराघूत होगा | इसलिए देवगिरि के सूचा ने होयसनराज तृतीय बल्लाल को
বাহ की ओर संगेत दिया और अपनी नझर बारंगल की ओर दोड़ाई।
चारंगत में प्रतापरद्र फाकतीय घासन करता था । व भी शव सम्प्रदाय
का भक्त एवं अनुयायी था। उसे समय दिल्ली में गयासुद्दीन तुग्रलक का
धासन था और उसका पुत्र मतिक उलूय र वारंगल का सूवां था ।
इसलिए उसने सारा यर्प वारंगल के विरुद्ध लगाया और वीर वत्सान
की गजनोयां, मश्यनोना और पंदस सेना तमिल प्रदेश के भाषतों पर टूद पड़ी 1
परन्तु पाडप सोमया उगके द्वाप नहीं आया । अपितु एफ दो बार बौर
यतात उसके हाथ संगते-लगते कठिनाई से बच पाया। वही-भारी सेनायें होते
हुए भी यौर बल्लाल फावेरों पार ने कर सका, कर दवी गही पाया ।
वीर वत्माल अपमान से यच गया पर उगे ছানি কী দীনি हुई । उसने
सग्रझा पा कि प्रंडप सोमैया डर जायेगा । हार मान लेगा। कर्नाटक के
दाजा फो प्रसन्न करने के सिये, सम्मुंग आकर, व्यंकटेश के भदिर में सिर
शुवाएगा, परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ । सोमेया धर पी भाँति फिरने
लगा । “तमिल का सिह” भागे नहीं, इसके शिकार में थीर वललाल धवरा-
करपी नह फिरे, इस उद्देश्य से कमी-फभी वेदान्तदेशिक सेना मे याते णात
रहते | एक बार तो राजगुर ने कावेरी सट पर, विषयु यज्ञ भी किया था ।
सैे-जैदे रमय वीता गमा । छुरू-शुरू में बहुत सरल दिखनाई देनेवाला
कार्य कठिन से कठिनतर द्वोठा गया । उत्ती मात्रा में बीर बल्माल का रोच
भौ चृता गया । वेदान्तदेशिक भहाराज की नज़र भी इतनी पेनी थी कि
देर फा शिकार शासी घता जाय, यह नही हो सकता था ।
मेरे पूर्ण बलराजा ने द्वारिका से आकर, यादवस्पती में, दोरा समुद्र
के भागकर शआनेवाले यादवों का राज्य स्थापित किया । सब भयंकर बाघ
इस यनदेश में सुले घुमते ये। और छेरों के बगरण, मनुष्यों का वास
अगम्भव था । एव शलराज़ा ने जगह-जगह घुम-फिर कर अपने हाथ से
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