राय हरिहर | Ray Harihar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : राय हरिहर - Ray Harihar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गुणवंत राय - Gunvant Ray

Add Infomation AboutGunvant Ray

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पतम्‌ चदय १४ च्छों के दोनों हाथों में लड॒दू थे। या तो पांडय नष्ट होगे या होपगल पराघूत होगा | इसलिए देवगिरि के सूचा ने होयसनराज तृतीय बल्लाल को বাহ की ओर संगेत दिया और अपनी नझर बारंगल की ओर दोड़ाई। चारंगत में प्रतापरद्र फाकतीय घासन करता था । व भी शव सम्प्रदाय का भक्त एवं अनुयायी था। उसे समय दिल्ली में गयासुद्दीन तुग्रलक का धासन था और उसका पुत्र मतिक उलूय र वारंगल का सूवां था । इसलिए उसने सारा यर्प वारंगल के विरुद्ध लगाया और वीर वत्सान की गजनोयां, मश्यनोना और पंदस सेना तमिल प्रदेश के भाषतों पर टूद पड़ी 1 परन्तु पाडप सोमया उगके द्वाप नहीं आया । अपितु एफ दो बार बौर यतात उसके हाथ संगते-लगते कठिनाई से बच पाया। वही-भारी सेनायें होते हुए भी यौर बल्लाल फावेरों पार ने कर सका, कर दवी गही पाया । वीर वत्माल अपमान से यच गया पर उगे ছানি কী দীনি हुई । उसने सग्रझा पा कि प्रंडप सोमैया डर जायेगा । हार मान लेगा। कर्नाटक के दाजा फो प्रसन्न करने के सिये, सम्मुंग आकर, व्यंकटेश के भदिर में सिर शुवाएगा, परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ । सोमेया धर पी भाँति फिरने लगा । “तमिल का सिह” भागे नहीं, इसके शिकार में थीर वललाल धवरा- करपी नह फिरे, इस उद्देश्य से कमी-फभी वेदान्तदेशिक सेना मे याते णात रहते | एक बार तो राजगुर ने कावेरी सट पर, विषयु यज्ञ भी किया था । सैे-जैदे रमय वीता गमा । छुरू-शुरू में बहुत सरल दिखनाई देनेवाला कार्य कठिन से कठिनतर द्वोठा गया । उत्ती मात्रा में बीर बल्माल का रोच भौ चृता गया । वेदान्तदेशिक भहाराज की नज़र भी इतनी पेनी थी कि देर फा शिकार शासी घता जाय, यह नही हो सकता था । मेरे पूर्ण बलराजा ने द्वारिका से आकर, यादवस्पती में, दोरा समुद्र के भागकर शआनेवाले यादवों का राज्य स्थापित किया । सब भयंकर बाघ इस यनदेश में सुले घुमते ये। और छेरों के बगरण, मनुष्यों का वास अगम्भव था । एव शलराज़ा ने जगह-जगह घुम-फिर कर अपने हाथ से




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now