गांधीवाद समाजवाद | Gandhivad Samajavad

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Gandhivad Samajavad by डॉ. राजेन्द्रप्रसाद सिंह - Dr. Rajendraprasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ भ ৫ परिभमप्‌ वेक विचार करने का प्रयल करके भौ, किसी स्पष्ट विचार तक नहीं पहुँच सकते हैं; फिर उसके प्रति दृढ़निष्ट बनने की तो बात हौ क्या * कारण यह है कि जीवन के व्यवहारप्रधान प्रश्नों पर स्पष्ट विचार के लिए जनसाधारण के सामने कुछ बातें बहुत ही स्थूल रूप में प्रकट होनी याहिए | जवतक इस प्रकार का स्थूलरशंन उन्हें नहीं होता तबतक उस विषय के विचार उनकी बुद्धि में प्रवेश ही नहीं कर पाते । ओर यदि तक से वे कुछ समझ भी गये, तो उसके कारण उनमें निष्क वह र्ता नहीं पंदा होती, जो एक शक्ति बन सके । अतएये ऐसे प्रश्न वाद-विवाद द्वारा समकाये और स्पष्ट नहीं किये जा सकते । इन्दे सममे के लिए इनका अधिक परिपक्व होना आवश्यक है ! इस दृष्टि से यदि हम देश-विषरयक्र समस्याओं के तत्कार और अनिवाय, तथा दूरगत, ते दो मेदक द॑ तो, मेरे विचार में हमारे देश [स्तत्र काने के किए নীল তিপ্ব जाते सवप्रथम और तात्कालिक दत्व की उदरती हैं, और यह जडूरी है कि इनके सम्बन्ध में हमारे विचारों में किसी प्रकार को अस्पष्टता, संदिग्घता या कचापन न रहे । क्यों कि इसके अभाव में विचारों की सारी स्पष्टता और तकशुद्धता उन ल्म कौ तरह है, जिनके पले कोई अंक नहीं रहता | वे वाते इस प्रकार ह -- १, जबतक देश की सेवा के चिरि तन, मन ओर धन अपण करके अपना जीवन कुर्बान करने की तेयारी वाले स्त्री-पुरुष हज़ारों की संख्या में उत्पन्न न होंगे, तब तक कुछ भी सिद्ध होने वाला नहों । २. ऐसे लोगों में भी यदि चरित्र की हठता और ध्येय की निष्ठा न हुईं, तो कोई बल या फल उत्पन्न होने वाला नहीं । ३. साधारण आत्मप्रुखपरायण तरुणो में इन्द्रियों के भोगों और जीत्रन के प्रति जो रस रहता है, उन; रसों से जिन्हें अदचि नहीं है, और उन्हें जीतने के लिए जिनका आत्म-संयम और इन्द्रिय-निग्नद के साथ आद्र हपूणा प्रयल नहीं है, उन ज्रौ-पुरुषों में चारित्र्य की दृढ़ता া শন




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