अपूर्व अवसर | Apurv Avasar

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Apurv Avasar  by श्री कुन्दकुन्दाचार्य - Shri Kundakundachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१४) पू प्रयोगादि कारणना योगी, ऊधरगमन सिद्धाय प्राप सुस्थित जो; सादि अनत अनत समाधि सुखां, अनंत दर्शन ज्ञान अनंत दित जो ।अपूषे० ॥१९॥ जे पद श्री सवब्े दीएुं ज्ञानमां, कदी शक्या नहीं पण ते श्री मगवान जो; বহ स्वरूपने अन्यवाणी ते शु कहे ! अनुभवगोचर मात्र रह ते ज्ञान जो ॥अपूब० ॥२०॥ एद परमपद प्रापि शयु ध्यान में, गजा वगरने हाल भनोर्थ रूप जो; तो पण निश्चय राजचन्द्र मनने रहो, সন্ত আন্বাহ थाश ते ज॑ स्वरूप जो ॥अपूच० ॥२१॥ च




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