प्रसाद काव्य - कोष | Prasad Kavya - Kosh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
638
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अचला
[१] १५७१ २५१, २१२॥ वि०, १७७;
(स० ) সত ই০1
निश्चत, स्थिर, टिकाऊ, ठहरा हुमा ।
श्रयला = का०,२६ १२६।
° सीर वणु पृष्वी। जो न चल, दुहरी हुई, स्थिर
(তি) (४०) । साथुमा दा गले मे पटनन का
वस्त्र ।
श्रचानक == कण० २६) का कुऽ १५) कार € १७,
[क्रि० विर] २७, ४१, १८४, १८५] ०, १५,
(६० ) १६, २६॥
प्रवस्मात्, सहमा |
श्रचेत = का०, ४७, ४६, ८६ ।
वि, घ° पुर] चेतनारहितः सज्ञाश्-य 1 भ्यावुन, विहन,
(६०) नासम, श्रनजान 1 जड । प्रतय ।
अचेतन = ल०, ३७1
[মি] जिसमे चेतना न हो, बेहोश, जीवन या
(से० ) प्राण से रहित । सनारीन । चेतनारदित ।
अचेतनता = का०) १३२]
[० सी°] (९०) नदतः, वेहोशी निष्पाणता ।
अच्छा = कण) ११११६ | বা कु०) ७६१ ८७।
{विर ] म० ४७, ६१ प्रर ५1 म०,२४।
५६० ) लऽ) ११।
उत्तम, विया, खरा, चाषा, भला ।
ठक । वका श्रादमी, श्रे वुस्प ।
अच्छी = क०, ६। काण कुण, ११६॥। कारः
[वि०]् १८०) २११1 ०) ६० | प्रे, ५॥
(सर) श्रच्छा का क्जीलिग |
श्रचुते = बा० बु० ६१ | का०, २७१।
[ वि? स॒० पु० ] पवित) विना छूमप्वा गया, प्रयाग रहित,
(६० ) जा काम मे न लाथा गया हा, नया,
वारो | निम्नकोटि का व्यक्ति या जाति;
अत्यज अ्रस्वृश्य |
पज = चि०) /२१1
[ वि? सं० पुण] अजमा जिसका जाम न हो, स्वयमू
(स) (ईश्वर) । कामदेव | ब्रह्मा | विष्णु |
शिव | बकरा, भेड़ा | माया, शक्ति ।
रघु के पुत्र वथा दशरथ के पिता।
'रघुवश” भ कालिदास ने अ्रज इदुमती
विवाह, इदुमती मृत्यु एव श्रज विलाप्
का ग्रत्यत्त रसात्मक वर्णन किया है |
पुराणों मे भी इनको चर्चा है।
अजीगते
अजगय = काऽ) १८५॥ ५
[० पुण] ( स* } भिवजौ का धनुप, पिनाक |
श्रजमेर = দণ্ঃ ২9)
[० षन] (हि>) मध्यप्रदेश का एक नपर्1
अजय = चि०, ६१1
[० 4०] (घ०) पराजय, हार ।
अजर अमर = का०, २७० ।
[भि] ईश्वर का एवं विशेषण। जो जरा-
(मर) मरण से रहित हो ।
अजस्र 5८ ल०, ५६!
[ वि० ] (स०) भ्रपरिमित, भ्रत्मधिक। निरतर, सदा।
अजहेँ = चि०, १५, ६७॥
[भ्र] श्रमीतक, इस समय तक, भ्राज तक,
(রও মা) प्रव भी।
अजान का०, ३०, १६३ । चि०, १५२ | ल०,
[विण सं° प°] ७४ ।
(হি) झनजान, भवोध, भनभिनश्न, सोसमझ,
अरवूक | जो न जाना जाय | श्रपरिचित,
আনান 1 प्रज्ञान, श्रनभिज्ञता। एक
प्रकार का पीपल को तरह का ऊंचा
पेड़ जिसके नीचे जान स बुद्धि अष्ट हो
जाती है। प्रात भसजिद में पुकारे
जानंवाने থান |
अजित = ल० ७७!
[ वि, स० ধু] श्रपराजित, जिसे जात न सकें, जा हार
( स् ) न हो। बुद्ध, शिव, विध्णु। जनिया
के दूपर तीयकर |
अजिर 5 का०, ६४। ० ३१) ल०२३।
[ स० पु० वायु, हवा। হুদা का विपय |
(स) श्रागत महन | शरीर । मेढ ।
अजी = क०3 १८ | का० कु० ८९]
[সণ] (০) सवायन मुचक शब्द | टे, धर, जी ।
হীন = क०) १७।
(सण पूर) शुनक्षेपके पिता।
अचीगते =
भूगुकुत मे उत्पन एक ज्राह्रण, जा शुत
पुच्छं शुन नेष श्रौर शुनालागुन--तोब
पुत्र का पिता था और वरुण वो षयि
दत क॑ लिय झपने पुत्र शुनझ्प का
| हरिश्चद क॑ हाथ विक्रय कर दिया
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